Book Title: Tulsi Prajna 1996 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 100
________________ ८. वही, ६।११७।२७: भ्यसनेषु न कृच्छणु न युद्धेषु स्वयंवरे । न क्रतो न विवाहे च दर्शनं दुष्यन्ति स्त्रियः ।। ९. महाभारत २०६९।९ : धयां स्त्रियं सभां पूर्व न नयन्तीति नः श्रुतम् । स नष्टः कौरवेषु पूर्वो धर्मः सनातनः ।। १०. नाया धम्मकहाओ ११८ : तं अत्थियाइं ते कस्सइ रन्नो वा जाव एरिसए ओरोहे दिट्ठ पुव्वे जारिसए णं इमे मयं आरोहे-विदेहवररायकन्नाए छिन्नस वि पायंगुट्ठस्स इमे दव ओरोहे समसहस्सइमंपि कलं न अग्घइ ।-तए णं से जियसत्तू दूयं सद्यावेइ ---जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका। ११. परमत्थदीपिनी (थेरगाथाकी अट्ठ कथा, बर्मी लिपि), पृ० ४६१ १२. Women under primitive Budhism p. 25 A woman no longer felt bound to marry to save herself respect and that of her family but, on the contrary found that she could honourably remain unmarried without running the gaug plank of public scorn. १३. थेरीगाथा १६१८१४ : ........"अनीकरत्तो च आरुही तुरितं । मणिकनकभूसितङ्गो कतञ्जली याचति सुमधं ॥ १४. थेरीगाथा १६।११४६७ : अथ ते भणति सुमेधा मा एदिसिकानि भवगतमसारं । पव्वज्जा वा होहिति मरणं वा मे न चेव वारेय्यं ॥ १५. णायाधम्मकहाओ १।१४।८ : तए णं सा पोट्टिला दारिया अण्णया कयाइ व्हाया सव्वालंकार विभूसिया चेडियाचक्कवाल-संपरिवुडा उप्पि पासायवरगया आगासत लगंसि कणगतिंदूसएणं कीलमाणी-कीलमाणी विहरइ । १६. विपाक १२९।३४ : तए णं सा देवदत्ता दारिया अण्णया कया हायाइ जाव विभूसिया बहूहिं खुज्जाहिं जाव परिक्खित्ता उप्पि आगासतलगंसि कणगतिदूसएणं कीलमाणी विहरइ । १७. अन्तगसदसाओ ३८६४२ : तए णं सा सीमा दारिया अण्णया कयाइ विभूसिया बहूहिं खुज्जाहिं महत्तरविंद-परिक्खित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव रायमगो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रायमगंसि कणगतिंदूसएणं कीलमाणी चिट्ठइ । १८. अंगुत्तरनिकाय २।३०३; थेरीगाथा १५।२।४१०-४१४ १९. अंगुत्तर निकाय ३।२२३ : "एवं भंते' ति खो सुजाता घरसुण्हा भगवतो पटिस्सुत्व येन भगवा तेनुपसंकमि। चण्ड २२, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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