Book Title: Tulsi Prajna 1996 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 113
________________ ग्रहों के जन्म नक्षत्र सामान्य जातक की तरह ग्रहों के भी जन्म नक्षत्र हैं । यम्यचित्रोत्तराषाढा धनिष्ठोत्तरफाल्गुनी, ऐन्द्रपीष्येऽर्क वारादिकदिग्रह रोहो स्तु भरणीज्ञेया केतोः सार्धं जन्मतिथी तु म शुभकर्म शुभग्रहाणां जन्मक्ष शुभकर्म पापग्रहाणां जन्मर्क्ष शुभं Jain Education International जन्मम् ॥ तथैव च शुभावहम्, चाप्यशुभं भवेत् ॥ सूर्य का भरणी नक्षत्र, चन्द्रमा का चित्रा, मंगल का उत्तराषाढा, बुध का धनिष्ठा, बृहस्पति का उत्तरफाल्गुनी, शुक्र का ज्येष्ठा, शनि का रेवती, राहु का भरणी केतु का अश्लेषा जन्म नक्षत्र हैं । ग्रहों की जन्मतिथि तथा जन्मनक्षत्र में शुभ कार्य वर्जित है । शुभग्रहों के जन्मनक्षत्रों में शुभकर्म फलदायक होता है । पापग्रहों के जन्म नक्षत्र में शुभ कर्म भी अशुभ हो जाता है । नक्षत्र वृक्ष विवर्जयेत् ॥ वृक्षों में कुछ वृक्ष नक्षत्रों से संबंधित होते हैं । जातक का जन्म जिस नक्षत्र में होता है उस जातक को उस नक्षत्र वृक्ष को दवा आदि में प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि वैद्य यदि उस वृक्ष संबंधी कोई दवा दे भी तो वह उसके लिए लाभप्रद नहीं होती। आयुर्वेद में कहा गया है विषद्रु धात्रीतरु हेमदुग्धा जम्बूस्तथा खदिरकृष्णवंशाः, अश्वत्थनागौ च वटः पलाश: प्लक्षस्तथाऽम्बष्ठतरुः क्रमेण ॥ ४२ ॥ विल्वार्जुनौ चैव विककंतोऽथसकेसराः शम्बर सर्जवञ्जु लाः । सपानसार्काश्च शमीकदम्बास्तथाऽऽम्रनिम्बी, मधुकद्रुमः क्रमात् ॥ ४३ ॥ अमी नक्षत्र देवत्या वृक्षाः स्युः सप्तविंशतिः, अश्विन्यादि क्रमादेषामेषा नक्षत्र पद्धतिः यस्त्वेतेषामात्मजन्मर्क्ष भाजां मर्त्यः कुर्याद्भेषजादीन् मदान्धः ॥ तस्यायुष्यं श्रीकलत्रञ्च पुत्रो नश्यत्येषा वर्द्धते वर्द्धनाद्यैः ॥ ४५ ॥ (राजनिघंटु धरण्यादि वर्ग श्लोक ४२ से ४५ ) For Private & Personal Use Only १. विषद्र (विष तन्दुक) (२) धात्री ( आंवला) ३. तरु (वृक्ष) ४. हेम दुग्धा ( औदुम्बर वृक्ष ) ५. जम्बू ६. खदिर ७. कृष्णवंशा ( कालावास ) ८. अश्वत्थ ( पीपल) ९. नाग ( नागकेसर वृक्ष ) १० वट ११ ( अम्बष्ठा) १४. विल्व १५. अर्जुन वृक्ष ( नागकेशर ) १८. शम्बर (अर्जुन) २१. सपानस ( निचुल) २२. अर्क २६. निम्बू २७. मधुक (महुआ ) ये सब क्रमश: अश्विनी आदि यही नक्षत्रों की पद्धति है । जो मदान्ध अपने जन्मनक्षत्र वाले पलाश १२. प्लक्ष ( पकडी ) १३. अम्बष्ठ तरु १६. विकंकत ( कटाई - रामवबूर ) १७. सकेशर १९. सर्ज ( राजवृक्ष) २०. वञ्जुल (बैत) (मदार ) २३. शमी २४. कदम्ब २५. आम नक्षत्रों के देव वृक्ष हैं । वृक्षों का औषध आदि तुलसी प्रशा १२ ॥४४॥ www.jainelibrary.org

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