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एक स्थल पर उन्मत्त हाथी को अपन भुजदंडों से वश में कर लेता है।
गोविंदे तुलिउ गोवट्टणु णं जयकारणु ।
जित्तउ तेण गउणं पुप्फयंत दिसिवारणु ।।" अर्थात् जिस प्रकार गोविंद ने गोवर्धन को उठाकर अपना जय जयकार कराया था उसी प्रकार नागकुमार ने उस गज को जीत लिया जैसे पुष्पों के समान दांतवाले दिग्गज को जीता हो। यायावरीवृत्ति
विभिन्न देशों एवं नगरों के परिभ्रमण से ज्ञानपूर्णता एवं नीतिकुशलता की प्राप्ति होती है इसीलिए चरितकाव्यों के नायक सामान्यतया देश भ्रमण के लिए निकलते है। सुप्रसिद्ध कवि बाणभट्ट ने देश भ्रमण से ही प्रभूत ज्ञान राशि को प्राप्त किया था। महाकविदंडी के दशकुमार चरित के सभी कुमार देशाटन से ही धन-समृद्धि एवं ज्ञानसम्पदा को प्राप्त करते हैं। नायक नागकुमार भी अनेक देशों, राज्यों एवं नगरों का परिभ्रमण करता है। अनेक विवाह
नागकुमार के अनेक विवाहों का उल्लेख मिलता है। वह जहां भी जाता उस राज्य की राजकुमारी उसके रूप सौन्दर्य पर आकृष्ट हो जाती थी । कश्मीर की राजकुमारी [५.१०], लक्ष्मीमति [६/९], मामा की पुत्री [७.९[, उज्जनी की राजकुमारी [८.६], तिलकासुन्दरी [८.८], पवनवेग से मुक्त करायी गई अनेक कन्याओं के साथ [८.१६] तथा दंतीपुर की कन्या के साथ वह विवाह करता है। धर्मरुचि सम्पन्न--
वह धार्मिक प्रवृत्ति का नायक है । अनेक स्थलों पर उसकी जिन भक्ति, दानदया आदि गुणों का निदर्शन मिलता है । ९ वी संधि में नागपंचमी व्रत के प्रति श्रद्धामान् के रूप में नागकुमार दृग्गोचर होता है। राज्याभिषेक
विमाता एवं विमाता पुत्र के कारण नागकुमार पित-राज्य से बाहर निकलकर राज्यों में भ्रमण करता हुआ प्रभूत मान, धन एवं ज्ञान का अर्जन करता है। बाद में उसके पिता के मंत्री नयन्धर राज्य में उसे वापस लाता है तथा पिता श्री जयंधर योग्य काल में उसका राज्याभिषेक करते हैं। वैराग्यवान् एवं मोक्षमार्ग में प्रतिष्ठित
अत्यन्त संरम्भ और पराक्रम के साथ पृथ्वी का उपभोग कर नागकुमार अपने गुणवान् पुत्र देवकुमार को अपना राज्य समर्पित कर संसार से विरक्त होकर जिन भगवान् के शरण में प्रविष्ट हो जाता है । अनेक योद्धाओं एवं अमात्यों के साथ जैन दीक्षा लेकर कठोर तप प्रतिपन्न हो जाता है । अन्त में मोक्ष में प्रतिष्ठित होता है, अंग के विकार से रहित हो जाता है :-- खग २२, अंक ३
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