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के आधार पर चतुर्दिक विजय लाभ करता है।
जन्म परम्परा के आधार पर नायक की दो श्रेणियां हो सकती हैं-१. उच्चवंशोद्भव और २. निम्नवंशोद्भव
नागकुमार उच्चवंशोद्भव है क्योंकि उसका जन्म धरती पर प्रसिद्ध कनकपुर के राजवंश में हुआ है । वह गिरिनगर की अनिंद्य सुन्दरी राजकुमारी पृथ्वी देवी और कनकपुर के राजा जयंधर का पुत्र था।
योनि के आधार पर नायक के तीन भेद माने जाते हैं :-- मनुष्य, दिव्य और दिव्यादिव्य । नागकुमार मनुष्य योनि का नायक है।
पुरुषार्थ के आधार पर नायक के चार भेदों की संकल्पना की जा सकती है :-१. अर्थासक्त, २. कामासक्त, ३. धर्मासक्त और ४. मोक्षासक्त । नागकुमार के मोक्षपथानुगामी होने से वह मोक्षासक्त नायक के अन्तर्गत परिगणित किया जा सकता
चारित्रिक विकास
नागकुमार के चरित्र का विकास संघर्षमय वातावरण में होता है । वह विमाता से तिरस्कृत होकर जीवन यात्रा प्रारंभ करता है तथा अपने पुरुषार्थ के बल पर सब कुछ प्राप्त कर लेता है । नायक का यह चरित्र वाल्मीकि रामायण के राम और भागवत पुराण के ध्रुव से मिलता जुलता है । विमाता कैकेयी के कारण राम वन-वन भटकते हैं, अपने-वीर्य का प्रदर्शन करते हैं तथा अन्त में अपना पुरुषोतमत्व को प्रतिष्ठापित करते हैं । बालक ध्रुव विमाता से तिरस्कृत होकर परमपद, परमचक्रवतित्व को प्राप्त करता है, उसी प्रकार नागकुमार विमाता के कारण राजा का कोप भाजन होता है, कारागार में डाला जाता है तथा कारागार से निकलकर अपने पुरुषार्थ के बल पर सब कुछ साध लेता है। नामकरण को सार्थकता
ऊच्च, स्थूल और सघन स्तनों वाली किंकणी लटकती हुई मेखलाएं धारण करने वाली गजगामिनी कामिनियां बालक को गोद में लेकर वापी जल को देख रही थीं कि अचानक बालक वापी में गिर गया। भीतर बैठे एक नाग ने उसको बचाया। नाग के द्वारा रक्षित होने के कारण देवों ने उसे नागकुमार तथा पिता ने प्रजाबंधुर कहकर पुकारा
__ जणणेण पयाधुरु सुदिसु देवेहिं वि णाय कुमार सिसु ॥ मेधा सम्पन्न राजकुमार• वह कुशल प्रज्ञा सम्पन्न बालक था। अल्पकाल में ही वह विविध विद्याओं में निष्णात हो गया :
सिद्धं णमह भणेवि अट्टारह लिविउ भुअंगउ । दक्खालइ सुयहो सिक्खइ मेहावि अणंगउ ।। कालक्खरइं गणियइं गंधव्वई वायरणाई सिक्खिउ । सो णिच्चं पढंतु हुउ पंडिउ वाएसरिणिरिक्खिउ ।।
खण्ड २२, अंक ३
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