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हमने भारत-संग्राम ३१४८ ई०पू० का स्थापित किया है। हम इस मान्यता पर स्थितप्रज्ञ हैं। परन्तु प्रमाणान्तर या प्रकारान्तर से उपस्थित मान्यताओं पर चर्चा करना शोध-सिद्धान्त के विपरीत नहीं पड़ता। हम जानते हैं, 'सुमतितंत्र' की गणना में 'भारत-संग्राम' ३१४९ ई० पू० में घटित हुआ था। हम उसी बिन्दु से गणनाविस्तार में उतरना चाहते हैं । यथा(१) भारत संग्राम
३१४९ ई.पू. (२) वराहमिहिर के मतानुसार २५२६ वर्ष पश्चात् वर्ष पश्चात् शककाल स्थापित हुआ
६२३ ई०पू० (३) प्रसिद्ध अरबयात्री अबूरिहां के कथनानुसार शककाल के ५८७ वर्ष पश्चात् विक्रम संवत्
-५८७अस्तित्व में आया :
३६ ई०पू० अरब यात्री अबुरिहां के विरुद्ध कोई तर्कवादी अभी तक हमारी जानकारी में नहीं है । हम इस प्रमाण को अंतिम और अखण्डनीय प्रमाण मानते हैं। पहचान
प्रस्तावित 'विक्रम संवत्' से प्राग्वर्ती दो विक्रम संवत् पहले से विद्यमान हैं। कालगणना की दौड़ में घावमान तीन-तीन विक्रम संवतों में ३६ ई०पू० की गणना की पहचान क्या है ? यह प्रश्न नितरां साम्प्रत नज़र आता है। पहले कुछ उदाहरण सामने रख लें, फिर परिचायक सिद्धान्त स्थिर करें। यथा
१. श्री विक्रमार्क नृप राजवरे.. २. श्री विक्रमार्क नृप संसदि"" ३. श्री विक्रमः सोऽधिभूः ॥ ४. श्रीमद् विक्रम भूभुजः। ५. श्री विक्रमार्को नृपः ६. श्रीमद् विक्रम भूभृता" ७. श्री विक्रमार्कोऽवनिपः ८. सदा विक्रम मेदनी शे... (सभी संदर्भ 'ज्योतिविदाभरण' के हैं,
अंतिमाध्याय ७-१८ श्लोक) ९. श्री विक्रमादित्य भूभृता १०. श्री विक्रमार्क नूप कालातीत... ११. विक्रम नप कालातीत" (भंडारकर सूची, क्रमांक ८०,१६९,२४०) १२. श्रीमतोऽवन्तिनाथस्य विक्रमस्य क्षितिशितुः ।
-शतपथ ब्राह्मण का टीकाकार 'हरिस्वामी' इन उदाहरणों को देख/पढ़कर यह निश्चित होता है कि विक्रम' "विक्रमादित्य' अथवा "विक्रमार्क' प्रभूति नामों के साथ-साथ 'नुप' 'भूभत्' 'मेदनीश' आदि विशेषणों को देखकर ३६-ईसवी पूर्व के "विक्रम संवत्' की पहचान सहज हो गई है।
तुलसी प्रमा
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