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गुजराती खंड में ही शिलालेख एवं मूर्ति शिल्प संबंधी अति महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है। हिन्दी खण्ड में नय विचार एवं काव्य प्रकाश के अनूठे टीकाकारआचार्य माणिक्य चन्द्र सूरि अच्छे लेख हैं। अंग्रेजी एक्शन में ललितकुमार का गुजराती चित्रकला पर लिखा लेख भी नयी जानकारी देता है। उनके इस कथन में सचाई है कि गुजराती जैन चित्रकला की अपनी स्वतंत्र शैली थी।
सब मिलाकर निर्ग्रन्थ के प्रवेशांक का स्वागत है। वस्तुतः ऐसे विविधतापूर्ण जैन शोध जर्नल की जैन जगत् को प्रतीक्षा बनी थी। शारदाबेन चिम्मनभाई केन्द्र ने इस कमी पूर्ति के लिए जो शुरूआत की है वह श्लाघ्य और प्रशंसनीय है।
-परमेश्वर सोलंकी ४. अड़बो (श्याम महर्षि री कवितावां)-श्याम महर्षि । प्रकाशक-राजस्थानी विभाग, राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ (चूरू) । संस्करण-१९९६ । मूल्य-८० रुपये।
प्रस्तुत संग्रह में श्याम महर्षि की ४९ कविताओं का संग्रह है। थे, बो; टाबर, रमतियां; कुतियो, धीणाप; मेह, डांफर; गांव री लुगायां, कुवै रो पाणी; भोभर; आभैरा मोती; आंधी, द्रोणपुर–इत्यादि कविताओं में आपसी तालमेल है। वैसे सभी कविताएं गांव की निश्च्छल संस्कृति के आसपास कवि मन की भटकन की तरह लगती हैं। ___ इन कविताओं में थली के गांवों पर बीती घटनाओं की छाप है। कवि कर्म की आधुनिक सोच के अनुसार इन कविताओं में व्यक्त अनुभूतियां जानी पहचानीसी लगती हैं। शास्त्रीय दृष्टि से इनमें कितना कुछ तत्त्व है ? यह प्रश्न अलग कर दें तो श्याम महर्षि की ये कविताएं आधुनिक राजस्थानी कविता के पाठक को बहुत आकर्षक लगेगी---इसमें संदेह नहीं ।
अच्छा हो, श्याम महर्षि कोई खण्ड काव्य की सर्जना में श्रम करें। उसमें उन्हें सफलता मिलेगी-ऐसी पूर्ण आशा है। 'अड़वो' से विलग इस प्रकार वे अपना निजी प्रतीक खड़ा कर सकेंगे।
५. मूकमाटी : चेतना के स्वर--डॉ० भागचन्द्र जैन 'भास्कर', प्रकाशक-जेजानी
चेरिटेबल ट्रस्ट एवं आलोक प्रकाशन, न्यू एक्सटेंशन एरिया, सदर, नागपुर । प्रथम संस्कर-१९९५ । मूल्य--५० रुपये । पृ० ३४४ ।
प्रस्तुत प्रकाशन लेखक के पूर्व प्रकाशित 'मूक माटी : एक दार्शनिक महाकृति' का नया संस्करण है जिसमें तीन नये अध्याय जुड़े हैं। वस्तुतः यह काव्य 'नित नवतामुपैति'-के अनुसार उत्तरोत्तर अभिनव उद्घाटनों से पाठकों को आप्लावित कर रहा है।
लेखक ने उसमें राष्ट्रीय चेतना के अन्तः स्वर खोजे हैं। आतंकवाद की प्रतिध्वनि देखिए
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तुलसी प्रज्ञा
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