Book Title: Tulsi Prajna 1996 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 50
________________ (स) एदें / खलु / मूलगुणा / समणाणं / जिण वरेहिं / पण्णत्ता । ३.९अ । ४. लघु (वर्ण) के स्थान पर गुरु (वर्ण) का प्रयोग जिससे छन्दोभंग होता है । ऐसे सभी प्रयोगों की सूचि (i) प्रथम गण के प्रयोग २. १अ तेहि / पुणो... (ii) द्वितीय गण के प्रयोग १.४५ मोहादीहिं / विरहिया... १.७६ब जं / इंदियेहि २. ३८अ लिंगेहि / जेहि... २. ४३ब सपदेसेहि / असंखा २. ५३अ सपदेसेहि / समग्गो... २. ५५ पाणेहि / चदुहि / जीवदि " २. ५९ब कम्मे हि / सो / ण/रंजदि... २. ८२ रुवा दिएहि २. ८५अ फासेहि / पुग्गलाणं " २.९६ब कम्मरजेहिं / सिलिट्ठो २. ९७ब अरहंतेहिं / जदीणं ३. ३८ब तं / णाणी / तिहि / गुत्तो' (iii) तृतीय गण के प्रयोग १.१२ब दुक्ख सहस्सेहि / सदा १.५९ ब रहियं / तु / आग्गेहादिहिं .. २५५ पाणेहिं / चदुहि / जीवदि ... (iv) चतुर्थ गण के प्रयोग १. ९०अ गुणेहिं २. ४अ , गणेहिं... (v) पांचवें गण के प्रयोग १. ६५अ २.६१ब (vi) छठें गण के प्रयोग **** 1 खण्ड २२, अंक ३ .... Jain Education International १. ३४अ ....., पोग्गलदव्व पगेहि / वयणेहिं । २. ५५ब ३. ३५ब ...., पोग्गलदव्वेहिं / णिव्वत्ता । (vii) देखिए अन्य गाथाएं .... फासे हि / समस्सिदे " उदयादिहिं/ णामकम्मस्स ॥ अथ / गुणजएहि / चित्ते हि । १.४०, ४३अ, ६३अ, ७३अ, ७५अ, और ८६अ । २. ५५, ५६अ, ५६ब, ५७अ, ६१अ, ७५ब, ७६अ, ७६ब, ८१, ८३ब और ८७अ ! For Private & Personal Use Only २०७ www.jainelibrary.org

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