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सलाम करो। हम तुम समधी का नाता है। हमारे तुम बडे रवेस हो।" रावजी कह्यो, “पातिसाह दीन-दुनी रा छौ । हूं पाधरियो घर रौ धणी रजपूत हूं। पातिसाहां सगावल करो। रोम-सूम विलोयदा रा धणी है। हूं
तौ वंदगी करूंछु । (वीरमदे सोनगरा री वात)।।
ऊपर दो उद्धरण दिए गए हैं। इनमें एक साथ ही बात लेखक के अतिरिक्त हिन्दू तथा मुसलमान पात्रों का वार्तालाप है। इसमें मुसलमान पात्रों की भाषा खड़ी बोली-मिश्रित राजस्थानी साफ है । ___इसी प्रकार नाथ-जोगी पात्रों से सम्बन्धित एक उद्धरण भी नमूने के लिए देखिए
तह गोरखनाथजी आय बैठा। तठे देपाल आदेस कर अर गोरखनाथजी नूं आसणदे अर बोलाया। आयस कन्है बैठा। इतरै कहीं केहीक कही, राज, गोठ तयार हुइ छ।" तद देपाल कही, पहिलै आपसजी नूं जिमावो।" तह कह्यो, "आपसजी, मांस है। आरोग सो ?" तह गोरखजी कही, "बाबा, हम अतीत छां। आवै, सो खावां । अतीत कू क्या पूछणा ? अलख का घर है। अब ही गोठ सब खावां ।" तद देपाल कही, "तो नहीं काटूं ? जीमी।" तह ये पुरसण गया अर गोरखनाथजी जीमता गया। तह सारी ही जीमीयो । तह देपाल पूछियौ, "आपसजी, धापीया ?" तह गोरख कही, "बाबा, अतीत का क्या धागा ? (देपाल घंघ री बात)
__ अनेक राजस्थानी 'बातें' मुसलमानों के जीवन पर आधारित हैं। उनमें आदि से अंत तक इसी प्रकार की भाषा का प्रयोग हुआ है । उदाहरण देखिए१. पांच पैकंबर उरस-थें उतरे। उतरि के वनवास के विष तपस्या करते थे।
सवा पांच मण भोग, पचास मण दूध का गैव का प्याला पक्कै का। चार पैकंबर लेटे-लेटे दोपहरै उठे। एक पैकंबर गैब का घोड़ा बणाय के, गैब का आयुध बणाय सिकार खेले। दोपहर छोड़े, तव सिकार ले आवै। आय प्याला पीये। पांच मिलिकर बैठे, खेल-रमै । कितने हेक रोज यूं तपस्या करतां हो गया। एक दिन रायब का घोड़ा बणाया। पैकंबर सिकार खेलता था। त्रिखा लागी। उरहां-परहां जोया। कहां आब होई तो आब पीजै । यूं करितां निजरि दौड़ाई। एक ठौर देख ज्यू बगली उड़ती निजर आई। उबाहां घोड़ा दौड़ाय करि गया । (बहलीमा री बात) प्रथम मयी देश को पातसाह । मयी पातसा तिसके छोरो नहीं। तब नीठीनीठी कैयेक महल के ताही पेट रह्या । फिर पूरे महीने हुए। पीड़ लागी। तद लड़की, सू मूला में हुई । तद काजी कह्या, “यह लड़की राखणी नहीं। ए बुरे नक्षत्र हुई।" तब हजरत ने कहा, "हम लड़की कू मार तो नहीं । हमारे नीटो-नीटी हुई है। जो हमारे ताही पूछते हो तो मोहर गज का कपड़ा लेहू, तिसमें लपेट कर, काठ के पंजरे में सुवाय कर दरियाव में बहाय
देहुं । (ससी-पुन्नू की बात) मुसलमानी-जीवन से सम्बन्धित सभी 'बातों' में इस प्रकार की भाषा-शैली को बल २२, बंक ३
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