Book Title: Tulsi Prajna 1990 12
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ हिन्दी जैन काव्य : दार्शनिक प्रवृत्तियां D डॉ० मंगल प्रकाश मेहता* अधिकांश हिन्दी जैन-साहित्य की आधार-भूमि जैन दर्शन है। परमात्म प्रकाश, योगसार, जसहरचरिउ, सावयधम्मदोहा, पावपुराण, यशोधर चरित्र, सीता चरित्र, शतअष्टोत्तरी, चेतन कर्म चरित्र, नेमिचन्द्रिका, बंकचोर की कथा आदि रचनाओं में जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष आदि दार्शनिक तत्वों का विवेचन विपुल मात्रा में हुआ है । अन्य रचनाओं में दार्शनिक तत्वों का प्राचुर्य भले ही न हो किन्तु उनकी मूल प्रेरणा का आधार जैन तत्व चिन्त न ही है। जोव : जीव तत्व का वर्गीकरण उसकी मुक्ति प्राप्ति की योग्यता तथा वर्तमान स्थिति के आधार पर किया गया है । मुक्ति-प्राप्ति विषयक योग्यता के सम्बन्ध में जीव के दो भेद हैं-भव्य और अभव्य । जिसमें सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र द्वारा मुक्ति प्राप्त करने की योग्यता है वह भव्य जीव है और जिसमें इस प्रकार की योग्यता का अभाव है, वह अभव्य जीव है।। ___ जीव की वर्तमान स्थिति के आधार पर उसके दो भेद हैं-संसारी और मुक्त । जो कर्मबद्ध है, वह संसारी जीव है। जो कर्म शृंखला से मुक्त हो चुका है, अनन्त ज्ञान , अनन्त सुखादि गुणों से अलंकृत है, वह आवागमन रहित अर्थात् मुक्त जीव है। जैन काव्य साहित्य में जीव तत्व का सर्वाधिक उल्लेख मिलता है । 'बंकचोर की कथा' के अनुसार जीव नानाविध सन्ताप सहन करता है, उसे एक क्षण सुख की अनुभूति नहीं होती। पाप के कारण जीव को अधोगति प्राप्त होती है। कोई गर्भ में ही समाप्त हो जाता है, कोई बाल या तरुण होकर मृत्यु प्राप्त करता है, कोई वृद्धावस्था के कष्ट सहन करता है, कोई मोहमद में लिप्त हो दुर्गतियों में भटकता है, कोई रोगादि से पीड़ित हो दुःख भोगता है, कोई पुत्र-कलह के बीच घर में बन्दी बना रहता है। _ 'यशोधर चरित' के अनुसार अपने उत्थान-पतन के लिए जीव स्वयं उत्तरदायी है । अपने कर्मों से ही वह बन्धन मुक्त होता है। अन्य न कोई उसे बांधता है और न बन्धन से मुक्त करता है । अजित कर्मों का फल वह निश्चित ही भोगता है। शुभाशुभ कर्मों के अनुसार ही उसे फल प्राप्त होता है ।' * शोधाधिकारी (सम्पादक-'तुलसी प्रज्ञा'), अनेकांत शोध पीठ, जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.) खण्ड १६, अंक ३ (दिस०, ६०) ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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