Book Title: Tulsi Prajna 1990 12
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 31
________________ कहते हैं कि सच्चा योगी शाकाहारी होकर ही रहेगा । शाकाहार सात्विक है और अ-शाकाहार राजसिक या तामसिक है। वैज्ञानिक अध्ययनों से एक ओर मांसाहार की अनेक हानियां सामने आई हैं, वहीं शाकाहार के गुणों का भी निदर्शन हुआ है । अतः मांस की शास्त्रीय अभक्ष्यता उत्पादन और प्रभाव दोषों के आधार पर और भी परिपुष्ट हुई .सारणी-५-मांस संबंधी शास्त्रीय और वैज्ञानिक सूचनाएं शास्त्रीय सूचनाएं वैज्ञानिक सूचनाएं १. उत्पादन (१) जीवों के शरीर में मांस का निर्माण (१) जीवों के शरीर में मांस का निर्माण आहार के सप्त धातुमय परिवर्तन से आहार के सप्त धातुमय परिवर्तन से होता है। होता है। (२) यह प्राणियों के घात से उत्पन्न होता (२) यह उच्चतर कोटि के प्राणियों के घात से उत्पन्न होता है। वैज्ञानिक विधियों ने इस प्रक्रिया को प्रतिरोधी एवं अ-जुगुप्सनीय बना दिया है । (३) मांस में सदैव सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं। (३अ) इसमें सदैव सूक्ष्म जीवाणु उत्पन्न होते रहते हैं । तिमीकरण से यह प्रक्रिया निरुद्ध होती है। (३ब) सूक्ष्मदर्शी से ज्ञात होता है कि मांस सूक्ष्मरेशों के बंडलों एवं ऊतकों का समुदाय होता है । इसमें जल, वसा, प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन होते हैं। इसके प्रोटीन की कोटि उत्तम होती है। (४) मांस में अरुचिकर गंध होती है। (४) इसके गंध की अरुचिकरता व्यक्ति गत रुचियों पर निर्भर करती है । (५) मांस क्षुद्र पशुओं के लार के समान (५) मांस की अपवित्रता विज्ञानसंमत अपवित्र है। नहीं है। यह ध्यक्तिगत रुचि का विषय है। २. तर्क संगति (१) अन्न की तरह मांस की भक्ष्यता की (१) इससे शरीर तंत्र को वसा एवं धारणा स्त्री एवं माता की भोग्या- प्रोटीन की उच्च या अधिक मात्रा - भोग्यता की मनोवृत्ति के समान है। मिलती है। इससे शरीर को ऊर्जा अधिक प्राप्त होती है। खण्ड १६, अंक ३ (दिस०, ६०) २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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