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है ? यह तो अच्छा है कि सारा संसार जैन नहीं है, नहीं तो उसके पास सिबाय संल्लेखना के अवलंबन के बिना कोई रास्ता ही नहीं रहता । अहिंसा की इतनी सूक्ष्म विचारणा उत्तरर्ती आचार्यों की देन है और उसमें व्यावहारिकता का भी लोप हो गया लगता है | अतः कन्दमूल और अन्य खाद्यों की आत्यंतिक अभक्ष्यता पर वर्तमान युग में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है । इसका आधार हिंसा-अहिंसा की धारणा के साथसाथ वैज्ञानिक भी होना चाहिये । साध्वी मंजुला ने सुझाया है कि जैनों की एतत्-संबंधी धारणा मनुस्मृति एवं याज्ञवल्क्य स्मृति की प्रभावशीलता को व्यक्त करती है । उपरोक्त विवरण से यह भी स्पष्ट है कि सभी कन्दमूल आहार के अल्प - मात्रिक घटक हैं । इसलिये भी इनकी अभक्ष्यता विचारणीय है ।
( १४-१५) बहुबीजक और बैंगन
बहुबीक वनस्पति ऐसे पदार्थ हैं जिनमें एकाधिक बीज होते हैं, जो नये पौधों की संतति को जन्म दे सकें। बैंगन भी इस दृष्टि से बहुबीजक है, पर उसे पृथक् क्यों लिया गया, यह स्पष्ट नहीं है । यह पुनरुक्ति दूर होनी चाहिये । सामान्यत: बहुबीजक पदार्थं भी बीजों की संख्या के अनुरूप बहुजीव योनिस्थान होते हैं । अतः वे अनंतकायिक ही हैं । संभवतः सामान्य जनों की स्पष्टता के लिये इन कोटियों को पृथक् गिनाया गया है । साथ ही बहुबीजक की परिभाषा भी बहुत स्पष्ट नहीं है । एक ओर अनार भक्ष्य है, दूसरी ओर बैंगन, खसखस, राजगिर आदि अभक्ष्य हैं। यदि हम सामान्य अर्थ ही लें, तो इसके अंतर्गत प्रायः वे सभी शाक-फल आ जाते हैं, जिन्हें हम दैनिक उपयोग में लेते हैं— कद्दू, लौकी, करेला, परवल, सेम, मटर, भिंडी, ककड़ी, मिर्च, टमाटर, तुरई, कटहल, आदि के समान शाकें तथा नींबू, मौसंबी, इमली, बिजौरा, कैथा, तेंदू, पपीता, संतरा, अनार, सेव, तरबूज, खरबूजा, लीची, अमरुद के समान मौसमी फल । कंदमूलों के समान तथा संभवतः उसी आधार पर ये भी अभक्ष्य हैं । आधुनिक आहार शास्त्री इन शाक- फलों को आहार का आवश्यक घटक मानते हैं । इनमें से अनेक तो बीमारों के लिए ऊर्जादायी आहार - रसों का भी अतिरिक्त काम करते हैं । कंदमूलों के समान ये भी खनिज एवं विटामिनों के स्रोत हैं । इनमें कन्दमूलों की तुलना में जलांश अधिक होता है । ये आहार के अन्य घटकों के पाचन और स्वांगीकरण में अमोघ सहायक होते हैं । भक्ष्याभक्ष्यता की आधुनिक धारणा के अनुसार कन्दमूल और बहुबीजकों में कोई विशेष अंतर नहीं प्रतीत होता । अतः इनकी अभक्ष्यता भी पुनर्विचार चाहती है । यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि जिन पदार्थों में जीवघात, स्वस्थ प्रतिकूलता (जैसे बैंगन, बहुबीजता, अन्तर्जीवता, पित्तजता आदि ) आदि संभव हैं, वे तो अभक्ष्य माने ही जा सकते हैं । लेकिन मात्र अन्तर्जीवता को अभक्ष्यता का आधार नहीं मानना चाहिए । यह तो खाद्यों के उत्पत्ति-स्थान एवं निक्षेपस्थान के परिवेश पर निर्भर करती है ।
४. विविध अभक्ष्य : (१६-१७) बर्फ और ओला
धर्म संग्रह में बर्फ और ओला- दोनों को अभक्ष्य बताया है। इसके विपर्यास में, जैन
खण्ड १६, अंक ३ ( दिस०, ९० )
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