Book Title: Tulsi Prajna 1990 09
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ हैं जो आज भाषाशास्त्रीय दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । इसमें सूक्त और सुभाषितों का बहुलता से प्रयोग हुआ है। विंटरनित्स ने इसे श्रमण काव्य की कोटि में रखा है। इस ग्रंथ की शैली अन्य आगमों की भांति जटिल एवं समासप्रधान नहीं है अपितु सुबोध और सरस है । उत्तराध्ययन की भाषा कितनी प्राचीन है तथा कितनी अर्वाचीन है इसकी विस्तृत चर्चा शान्टियर, जेकोबी और विंटरनित्स आदि विद्वानों ने की है । इसमें संवादात्मक शैली में गंभीर अर्थ का प्रतिपादन है । २३ वां और २६ वां अध्ययन भाषा की दृष्टि से प्राचीन लगता है। अन्य ग्रंथों से तुलनीय प्रसंग उत्तराध्ययन में अनेक ऐसे स्थल, प्रसंग, कथानक या गाथाएं हैं जो उसी रूप में या परिवर्तन के साथ बौद्ध एवं वैदिक साहित्य विशेषकर महाभारत में मिलती हैं । किञ्चित इस प्रकार के अनेक प्रसंगों की तुलना विटरनित्स, हर्मन जेकोबी, ल्यूमेन तथा जालेशान्टियर आदि विद्वानों ने की है । धम्मपद से इसके अनेक पद्य तुलनीय हैं। इसके अतिरिक्त श्वेताम्बर ग्रंथ मूलाचार में भी इसके विषय में साम्य है। उत्तराध्ययन में द्रव्य, गुण, पर्याय की परिभाषाएं हैं। इसकी तुलना क्रमश: वैशेषिक दर्शन के द्रव्य, गुण और कर्म से की जा सकती है । राजा नमि की कथा बौद्ध और वैदिक दोनों परम्पराओं में मिलती है। हरिवंश मुनि की कथा कुछ अंतर के साथ बौद्धों के मातंग जातक में मिलती है। इस अध्ययन की अनेक गाथाएं भी तुलनीय है । चित्रसंभूत कथा तथा इषुकार कथा की तुलना क्रमशः चित्रसम्भूत जातक तथा हत्थिपाल जातक से की जा सकती है । रथनेमीय अध्ययन में श्रीकृष्ण का वर्णन वैदिक साहित्य से तुलनीय है । मृगापुत्र की कथा भी बौद्ध साहित्य में मिलती है। संदर्भ : १. जैन तत्व प्रकाश, पृ० ४३ . २. नंदी टीका, पृ० ७२ ३. उनि ३; कम उत्तरेण पगयं आयारएसेव उवरिगाइं तु । तम्हा उ उत्तरा खलु ___ अज्झयणा हुंति नायत्वा ।। उ. चूणि ४. उशांटो प ५; आरतस्तु दशवकालिकोत्तरकालं..... इति ५. सेक्रेट बुक्स आफ द इस्ट ६. धवला, पृ० ८७ ७. उशांटी ५५ 100 खण्ड १६, बंक २ (सित०, ६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80