Book Title: Tulsi Prajna 1990 09
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ असामाजिकता के लक्षण प्रकट होते हैं । यह सुखाभास की अनुभूति ही इसके व्यसन का कारण बनती है। शास्त्रों में मद्य के जिन प्रभावों के वर्णन हैं, वे अधिक मात्रा में मद्यपान से शरीर-तंत्र के विभिन्न घटकों पर होने वाले प्रभावों के निरूपक हैं। वैज्ञानिकों ने इन दृष्ट प्रभावों के अन्तरंग कारणों का भी ज्ञान किया है। उनकी शोधों ने यह भी बताया है कि अफीम में विद्यमान कोडीन-मोर्फीन, गांजे-चरस-भांग में विद्यामान कनोविनोल की क्रिया भी, संरचनात्मक भिन्नता के बावजूद भी, शरीर-तंत्र के सक्रिय अवयवों पर मद्य के समान ही होती है । एल. एस. डी. हीरोइन और वर्तमान स्मैक के भी समरूप प्रभाव होते हैं। ये मद, मोह एवं विभ्रम उत्पन्न करते हैं। वैज्ञानिक मद्यपायी की विभिन्न निंदनीय एवं असामाजिक प्रवृत्तियों की भली-भांति व्याख्या कर सकता है । अतः औषधीय या बाह्यतः संपकित (मर्दनादि) मद्यमात्रा से अधिक मद्यपान हमारे लिये हानिकारक है । निशीथ चूर्णि" में भी मद्य के व्यसन को सोलह सामाजिक बुराइयों में गिना गया है, फिर भी, बीमारी में उसकी भक्ष्यता स्वीकृत है। दिगंबराचार्य इसे स्वीकृत नहीं करते । इस प्रकार, स्थावर-जीव-घात, मादकता, विकृति एवं अनुपसेव्यता (लोक विरुद्धता) के कारणों से मद्य की अभक्ष्यता और भी प्रयोगसिद्ध रूप से पुष्ट हुई है । इसमें उत्पाद दोष भी है और प्रभाव-दोष भी है । इसके समान अन्य मादक द्रव्यों के उपयोग के प्रति भी भारत सरकार तक चिन्तित है। उनमें उत्पाद दोष चाहे न भी हो, प्रभाव दोष तो है ही। सरकार दृश्य-श्रव्य एव दूरदर्शन के माध्यम से इनके कुप्रभावों के प्रति जन-जागरण कर रही है । जैनों के लिये यह प्रसन्नता की बात है । (२) मक्खन मद्य के समान मक्खन को भी विकृति माना गया है। पर यह मान्यता कब प्रचलित हुई, यह स्पष्टतः ज्ञात नहीं क्योंकि इसका उल्लेख अनेक आगमों में भी है। आ० हरिभद्र, अमृतचंद्र, अमितगति, आशाधर तथा दौलतराम कासलीवाल ने बताया है कि दूध से बने दही को मथकर मक्खन निकालने के बाद उसे एक-दो मुहर्त (१-१३ घंटे) में तपाकर घृत के रूप में परिणत कर लेना चाहिये । इसके बाद मक्खन में उसी वर्ग के असंख्यात संमूर्छन जीव उत्पन्न होते रहते हैं । इसके खाने से मधु और मांस के समान दोष होता है । वस्तुतः मक्खन दूध या मलाई के आंशिक किण्वन से प्राप्त होता है । उग्रादित्य ने बताया है कि इसके गुण दूध से मिलते-जुलते होते हैं ।२५ १. दूध : शीत, मधुर, चिक्कण, हितकर, रोगनाशक, कामवर्धक, पुष्टिकर, अमृत २. मक्खन : शीत, मधुर/अम्ल, पथ्य, हितकर, रोगनाशक, अतिवृष्य - ३. घृत : शीत, पाचक, - दृष्टिवर्धक, रोगनाशक मेध्य, पुष्टिकर, रसायन ४. दही : उष्ण, अम्ल, चिक्कण, मलावरोधी, वातनाशक, वृष्य, विषहर, गुरु ५. तक्रः उष्ण, अम्ल, रुक्ष, कषाय, मलशोधक, कफनाशक -- अग्निवर्धक, लघु दूध और मक्खन में यह अन्तर है कि दूध में पानी अधिक, वसा कम होता है और मक्खन में वसा अधिक (८५%) और जल तथा अन्य पदार्थ कम (१५%) होते हैं । वस्तुतः मक्खन बनाने की प्रक्रिया दूध के तैल-जल इमल्शन को जल-तल तुलसी प्रज्ञा For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80