Book Title: Tulsi Prajna 1990 09
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 51
________________ पद न होने पर भी यह कल्पना कर ली गयी कि युधिष्ठिर शकाब्द के २५२६ वर्ष पूर्व वर्तमान था । अब इस निराधार कल्पना को छोड़ देने में ही शोधकार्य का कल्याण है । विष्णुधर्मोत्तरपुराण का संदर्भ ऐसा ही प्रसंग विष्णुधर्मोत्तरपुराण का है । उसमें कलियुग के १० वर्ष बीतने पर श्री कृष्ण के पौत्र वज्र ने मार्कण्डेय से पूछा कि अभी कितने दिन मैं राज्य करूंगा और परीक्षित् कितने दिन राज्य करेगा । इसीके उत्तर में मार्कण्डेय ने वे पंक्तियां कही हैं जिनका उद्धरण उक्त लेख में है । स्वयं सम्बद्ध लेखक भी उन पंक्तियों का अर्थ यही करते हैं कि ५० वर्ष बाद जब परिक्षित् दिवंगत होंगे तो तुम भी स्वर्ग को प्राप्त होगे । विशेषता यह है कि वे "आज" और "इस वर्ष" पर जोर देते हैं और उसे १४७४६ वें वर्ष का सूचक समझते हैं । 'वाताश्वमेघवर्षेस्मिन् सहयक्षेण' का अर्थ १४७४६ कदाचित् हो सकता है । वात == ४६, अश्व ७, मेघ ४, यक्ष १ । 'अङ्कानां वामतो गतिः' से १४७६४ प्राप्त होता है, वात के ४६ को न उलटें तो १४७४६ प्राप्त होगा । प्रश्न प्रासंगिकता का है । पुराण कलि के इतने वर्ष पूर्व और इतने वर्ष पश्चात् के अतिरिक्त कहीं भी किसी सन् - संवत् का प्रयोग नहीं करते और यहां अन्यथा कुछ हुआ है ऐसा मानने के लिए पर्याप्त कारण होने चाहिएं। ठात् एक स्थल में किसी अज्ञात, अख्यात संवत् का प्रयोग करके पुराणकार हमें उलझन में डालने क्यों जायेंगे और उसका यहां प्रयोजन ही क्या है ? "आज" का सीधा अर्थ कलियुग का १० वां वर्ष है जब वज्र ने प्रश्न किया । प्रसंगानुसार इस वर्ष " का अर्थ कलियुग का ६१ वां वर्ष है जब वज्र और परिक्षित् दोनों का देहान्त होगा । इस दृष्टि से 'वाताश्वमेघवर्षेस्मिन् सह यक्षेण' से प्राप्त संख्याओं ४६, ७, ४, १ को जोड़ दें तो प्रकृत अर्थ ६१ वां वर्ष निकल आता है । यही प्रकृत अर्थ है क्योंकि वज्र के प्रश्न से इसी उत्तर का सामंजस्य है । न पुराणों में ही कहीं ऐसा मिलता है कि वज्र और परीक्षित् किसी शकराजा के समय (जन्म काल या शासनकाल ) दिवंगत हुए न जैन साहित्य में ही । अतः विष्णुधर्मोत्तरपुराण में १४७४६ या १४७६४ वर्ष का उल्लेख है, ऐसा मानना मेरी विनम्र सम्मति में ठीक नहीं । ऐतज्मा संवत्सर और शक संवत् f राजा देवल के ऐतमा संवत्सर के प्रसंग में उक्त लेख की सूचना इस प्रकार है" राजा ककुत्स्थ से राजा सगर तक ३४४६ वर्ष बीते और राजा सगर से राजा युधिष्ठिर तक २६६५ वर्ष जब कि राजा युधिष्ठिर और राजा देवल में २५२६ वर्षो का अन्तर है ।" इसका अर्थ यह हुआ कि ६१२ ई० पू० के लगभग जब वृद्धगर्ग ग्रन्थ की रचना हुई, उसी समय देवल का ऐतज़्मा संवत्सर भी चला। इससे ५१६१ वर्ष पूर्व अर्थात् ५८०३ ई० पू० सगर का और उसके ३४४६ वर्ष पूर्व का समय है । ये तिथियां विचारणीय हैं । ६२५२ ई० पू० ककुत्स्थ चम्पा का एक लेख जब यह कहता है कि सगर ने ७२० शक वर्ष पूर्व श्रीमुख लिङ्गदेव की स्थापना की थी तब उसका अर्थ होता है संवत्' से ५१६१ वर्ष पूर्व हुआ । इससे उल्लिखित 'शक संवत्' का आरम्भ काल ५८०३ संवत् से ५६११ उक्त कार्य 'शक खण्ड १६, अंक २ (सित०, ६० ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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