Book Title: Tulsi Prajna 1990 09
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ हुआ। देखिए(क) वर्धमान संवत् : परिषद् पत्रिका : २०१४, जनवरी, १९८१, पृ० ४६ (ख) भारतीय इतिहास में ७०० वर्षों का उलटफेर : हिन्दुस्तानी शोध पत्रिका, भाग ४, अंक १ और पृ० १॥ प्रतिक्रिया-२ शकराजा और शककाल -~-उपेन्द्रनाथ राय 'सुमतितन्त्र का शकराजा और उसका कालमान' नामक लेख में लेखक ने कुछ ऐसे तथ्य दिये हैं और ऐसी समस्याएं रखी हैं जिनका समुचित समाधान कर सकने की क्षमता मुझमें नहीं है । मेरी जानकारी सीमित है। फिर भी कुछ निवेदन करने का लोभ सवरण नहीं कर सका क्योंकि आशा है कि समाधान का पथ निकालने में इससे अधिकारी विद्वानों को कुछ सुविधा होगी। बृहत्संहिता का संदर्भ उक्त लेख में लेखक लिखते हैं :-"राजा युधिष्ठिर और शक राजा में २५२६ वर्षों का अन्तर वृद्धगर्ग के हवाले से वराहमिहिर ने अपनी बृहत्संहिता (१३।३) में भी दिया है "आसन् मघासु मुनयः शासति पृथिवीं युधिष्ठिरे नृपतौ। _ षड्द्विकपञ्चद्वियुतः शककालः तस्य राज्ञश्चः॥" लेखक का यह कथन आधुनिक विद्वानों की परम्परा के सर्वथा अनुकूल है। परन्तु सत्य का निर्णय हाथ गिनकर नहीं किया जा सकता। किसी श्लोक का अर्थ-निर्णय करने के लिए श्लोक का पदच्छेद और अन्वय करना चाहिए। इसके बाद देखना चाहिए कि बिना किसी पद को छोड़े अथवा किसी अदृष्ट पद का अध्याहार किये बिना अर्थ निकलता है ? यदि निकलता है तो जो अर्थ मिले वही प्रकृत अर्थ है। कहींकहीं किसी एक अदृष्ट पद का अध्याहार आवश्यक एवं मान्य होता है किन्तु पूरे वाक्य या वाक्यांश का अध्याहार या किसी भी पद का वर्जन कदापि नहीं होता। इस पद्धति का वर्तमान युग में आग्रहवश अनादर ही देखा जा रहा है । अतः बहुसंख्यकों के मत से मुझे असहमत होना पड़ा है। इस श्लोक का अन्वय इस प्रकार है-~-युधिष्ठिरे नृपती पृथिवीं शासति मुनयः मघासु आसन, तस्य राज्ञः च शककालः षद्विकपञ्चद्वियुतः । इससे सीधा अर्थ यह प्राप्त होता है कि राजा युधिष्ठिर के शासनकाल में सप्तर्षि मघा में थे और उस राजा का शककाल २५२६ है । 'उस राजा का शककाल' का सरल अर्थ युधिष्ठिर का शककाल है जो राजा युधिष्ठिर के राज्यारोहणा से शुरू हुआ। वृद्धगर्ग में इस श्लोक का प्रयोजन ग्रन्थ के रचनाकाल का निर्देश करना था। इस समय अप्राप्य उक्त ग्रन्थ ३१३८-२५२६ -- ६१२ ई० पू० के निकट रचा गया होगा। कालान्तर में इस श्लोक का उपयोग युधिष्ठिर का काल बताने के लिए होने लगा और श्लोक में 'प्राक्' या 'पूर्व' जैसा कोई तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80