Book Title: Tulsi Prajna 1990 09
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 53
________________ (२) जिन राजाओं का शकजाति से कोई सम्बन्ध नहीं उनके लिए भी 'शक', 'शाक', 'शकाब्द' जैसे शब्दों का प्रयोग मिलता है । यथा, अकलङ्कचरित में विक्रमाब्द के लिए 'शकाब्द' का प्रयोग किया गया है - विक्रमाकं शकाब्दीय शतसप्तप्रमाजुषि । ५७ ई० पू० में संवत् चलानेवाले विक्रमादित्य का जन्म शकजाति में नहीं हुआ, वह तो शकों का शत्रु, उनका उच्छेदकर्ता था । इसी प्रकार ऐहोल अभिलेख में ७८ ई० से प्रवर्तित कालगणना का उल्लेख यों है : - "शत्y त्रिसहस्रेषु भारतादाहवादितः । सप्तान्दशतयुक्तेषु गतेष्वन्देषु पञ्चसु || पञ्चाशत्सु कलो काले षट्सु पञ्चशतासु च । समासु समतीतः शकानामपि भूभुजाम् ||" "भारत युद्ध के इस ओर कलिकाल में ३७३५ वर्ष बीतने पर ५५६ शक में " यही इसका अभिप्राय है । दोनों संख्याओं को ६३४ ई० के तुल्य मानने से ही इतिहास के निर्विवाद तथ्यों में संगति बैठती है । किन्तु ऐहोल अभिलेख जिस कालगणना को " शकराजा का वर्ष" ( शकानां भूभुजाम् समासु) कहता है उसी को, ब्रह्मगुप्त "शकान्तेब्दा: ", श्रीपति " शकान्ते" और भास्कराचार्य " शकनृपस्यान्ते" कहते हैं । प्राचीनतम साक्ष्यों से निष्कर्ष यही निकलता है कि इस कालगणना का प्रचलन किसी शकराजा के वध के समय से हुआ और उसका वध करनेवाला गुप्त वंश का चन्द्रगुप्त द्वितीय ही था ( द्रष्टव्य, सत्यश्रवा कृत 'Sakas of India', 1981, p. 45-51 ) 1 यहां भी वही स्थिति है । चन्द्रगुप्त द्वितीय शक जाति का राजा नहीं था, वह तो शकराजा का वध करनेवाला था । वह 'शकानाम् भूभुज् ' कैसे हो सकता है ? ऐसी स्थिति में विक्रमादित्य और चन्द्रगुप्त द्वितीय के लिए प्रयुक्त शकेन्द्र, शकनृपति, शकभूभुज् आदि का अर्थ शकजाति में उत्पन्न राजा नहीं वरंच शकजाति को वशवर्ती बनानेवाला, शकों पर अपना आधिपत्य जमानेवाला राजा ही हो सकता है । 'शकेन्द्र' की तुलना इस प्रसंग में हम मृगेन्द्र शब्द से कर सकते हैं जो मृगयूथ के सर्दार के लिए नहीं, मृगों का विनाश करनेवाले सिंह के लिए आता है । वास्तव में भारतीय परम्परा के शकेन्द्र, शक नृप, शकभूभुज् आदि पद संस्कृत व्याकरण में उल्लिखित 'शाकपार्थिव' शब्द के समानार्थक हैं । इस सम्बन्ध में पं० युधिष्ठिर मीमांसक का विचार ध्यान देने योग्य है । "महाभाष्य २।१।६८ में एक वार्तिक है 'शाकपार्थिवादीनामुपसंख्यानमुत्तरपदलोपश्च ।' इसका एक उदाहरण है— शाकपार्थिवः । शाकपार्थिव वे कहलाते हैं जिन्होने स्वतंवत् चलाया । यहां शक शब्द संवत् का वाचक है । प्रज्ञादित्वात् अण् से अण् होकर प्रज्ञ एव प्राज्ञः के समान शक एव शाकः शब्द निष्पन्न होता है । (संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास, चतुर्थ संस्करण' १६८४, प्रथम भाग, पृ० ४८७ ) । इस प्रकार किसी संवत् के प्रचलन से जिनका सम्बन्ध है उन राजाओं को शकेन्द्र, शकनृप, शक्रभूभुज् आदि कहना साधु हो जाता है । १६, अंक २ (सित०, ६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only ४ www.jainelibrary.org

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