________________
अनैतिहासिक होने से अमान्य है।
शकराज बनाम शकराज सुमतितंत्र की पाठान्तर-कल्पना रास आई है। मौर्य संवत् ४०८ में एक शकराजा हुमा, मौर्य संवत् ४१८ में तद्भिन्न शकराजा हुआ। दो-दो मूर्तियों की पहिचान इतिहास में उपलब्ध है । यथा
प्रमर : ६६ ई० पूर्व
गन्धर्वसेन ........
विक्रमादित्य शालिवाहन
महेन्द्रादित्य
- (प्रतापादित्य)
, १. भर्तृहरि ..-२. साहसांक विक्रमादित्य-३. शूद्र क (१) प्रमर का उल्लेख भविष्य पुराण में है, और उसका समय है-सप्तर्षि संवत् ३७१० ..६६ ईसवी पूर्व । जैन ग्रन्थों में इसका स्पष्ट उल्लेख है।
(२) शालिवाहन-विक्रमादित्य प्रसिद्ध इतिहास-पुरुष है। इसीने मालववंश को उज्जैन से उत्पादित किया था :--
"एतस्मिन्नन्तरे तत्र शालिवाहन भूपतिः। विक्रमादित्य-पौत्रस्य पितृराज्यं गृहीतवान् ॥"- भविष्य पुराण
(३) इसके दो पुत्र हुए --- महेन्द्रादित्य और प्रतापादित्य । सौभाग्यवश प्रतापादित्य काश्मीर-नरेश स्थापित हुआ
"प्रतापादित्य इत्याख्न: तैरानीय दिगन्तरात् ।। विक्रमादित्य भूभर्तुः ज्ञातिरत्राभिषिच्यत ॥"-राज, २।४
(४) राजा महेन्द्रादित्य के पश्चात् ज्येष्ठ अपत्य होने से 'भर्तृहरि' राजा बना । शतकत्रय का प्रणेता यही भर्तृहरि है । दुःशीला पत्नी से उद्विग्न भर्तृहरि ने सिंहासन छोड़ दिया और उसके उभय सहोदरों ने भ्रातृ राज्य को बांट लिया। ये दोनों 'शकराजा' कहलाए । यथा१. साहसांक शकराजा
२. विक्रमांक (शूद्रक) शकराजा शासनकाल ६५-८० ईसवी | शासनकाल ६५-६० ईसवी। इन सहोदर राजाओं का सह-उल्लेख विशेष ध्यानाकर्षक है१. वासुदेव-सातवाहन (हाल)--शूद्रक-साहसाङ्क (राजशेखर) २. संत्यज्य विक्रमादित्यं सत्त्वोद्रिक्तं च शूद्रकम् ॥ (राजतरंगिणी)
इन सहोदर राजाओं की पृथक्ता और पहचान की पुष्कल सामग्री उपलब्ध है; परन्तु हम विस्तार में न जाते हुए संक्षेप में बताना चाहेंगे कि नाटककार कालिदास दोनों का सभारत्न था
१. रसभावविशेष दीक्षा गुरोः साहसाङ्कस्य श्री विक्रमादित्यस्य (शाकुन्तलम्)
२. व्याख्यातः किलकालिदास कविना श्री विक्रमांको नृप । (सूक्ति समुच्चय) खण्ड १६, अंक २ (सित०, ६०)
४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org