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नंदसंवत् ८०० - मौर्यसंवत् ०० = ३४२ ई० पूर्व का साल । यद्यपि पौराणिक कालगणना तथा सुमतितंत्रीय कालगणना में तालमेल का अभाव है; यथा
__ "प्रमाणं वै तथाचोक्तं महा-पमान्तरं च यत् ।
अन्तरं तच्छतान्यष्टो षत्रिंशत् समाः स्मृताः॥" -मत्स्य, १७१।१६ कहां ८०० (आठ सौ) और कहां ८३६ वर्ष ? है कोई तालमेल ? हमने संवत्सर ज्ञान के सहारे ८००-३६ - ७६४ सौर वर्ष ही ग्रहण किए हैं। (जो पौराणिक कालगणना के अनुसार सो-सैंकड़ा यथार्थ हैं) परन्तु सुमतितंत्र के साथ उसका कोई समतल समन्वय नहीं है । तथापि महद् आश्चर्य है-फलागम तक पहुंचते-पहुंचते दोनों गणनाएं “मौर्य संवत् ०० = ३४२ ई० पूर्व" तक एकमेव फलमुक् हो जाती है।
(0) सुमतितंत्र की आठवीं पंक्ति : राजा शूद्रकदेवश्च वर्षसप्ताब्धिचाश्विनी रचनाकार की वैज्ञानिक सूझबूझ की पराकाष्ठा को प्रमाणित करती है। यहां पहुंच कर रचनाकार अपनी शलाका परीक्षा लेने पर तुल गया है । उसके निर्णय के अनुसार जब शूद्रक संवत् २४७ था, तभी अर्थात् उसी वर्ष मौर्य संवत् १३२ था। क्या कमाल का गणितीय निर्णय है : ईसवी पूर्व ४५६
ईसवी पूर्व ३४२ [-] २४६ शूद्रक संवत् --- र [-] १३२ मौर्य संवत् २१० ई० पूर्व
२१० ई० पूर्व जरा ध्यान रहे-हमने सारिणी की 8 वीं पंक्ति को [ ] कोष्ठक में लिखा है।
(::) मौर्य संवत् ४०८ वर्ष बीतने पर इतिहास में शक राजा हुआ। गणना बड़ी साफ- सुथरी है : ४०८-३४२ ..६६ ईसवी सन् । अर्थात् सुमतितंत्र का प्रस्तावित शकराजा ईसवी सन् ६६ में हुआ। हम इस पर पर्याप्त अनुसंधान कर चुके हैं।
पाठान्तर-सिद्ध सारिणी।
४५७
२८२८ २८०२ ८०२ ११७ ० ०
३४० २६६० २६३४ ६३४ २४७-४८ १३२ - २०८-०६ ६२४४ ३२१८ १२२२ ५३५ ४१८ ०० ७८ ईसवी
विचारक वृन्द ! जरा ध्यान से अवलोकन करें-(क) ४०८ के विकल्प में ४१८ (वसुचन्द्रकृतं तथा) का प्रस्ताव ईसवी सन् ७८ के शकराजा को सारिणी बद्ध करना है । (ख) इसका सीधा दुष्प्रभाव मौर्य संवत् के स्थापना वर्ष पर पड़ता है। ३४२ ई० पूर्व का स्थान ३४० ई० पूर्व ने ले लिया है। परिणाम स्वरूप समूची पौराणिक काल-शृंखला डगमगा जाएगी। (ग) शूद्रक संवत् की स्थापना बिन्दु स्यात्, सुरक्षित रह गई है : ई० पूर्व ३१०२-२६४५ - ४५७ ई० पूर्व का साल समाहित हो जाता है । (घ) शलाका-परीक्षा वाली पंक्ति भी १-२ वर्षों की घटत-बढ़त से प्रभावित हुई है । शेष समूची सारिणी पूर्ववत् है । वसुरन्ध्रकृतं तथा == ४६८ का अर्थाधान हर कीमत पर और प्रत्येक स्तर पर
तुलसी प्रज्ञा
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