Book Title: Tulsi Prajna 1990 09
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ सुमतितंत्र का शकराजा और उसका कालमान ( प्रतिक्रियाएं) [ उक्त शीर्षक से गत अंक में छपे लेख पर दो प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं जो अविकल रूप में यहां प्रकाशित की जा रही हैं । जैसाकि सम्बद्ध लेखक ने अपने लेख में आह्वान् किया है - ' अधिकारी विद्वान् इस शोध कार्य में समभागी बनेंगे और भारतीय कालगणना का यह अस्पष्ट अध्याय स्पष्ट हो सकेगा ' - और भी विद्वान् अपने अभिमत देंगे और उनके द्वारा यह परिचर्चा तथ्यान्वेषण में सहायक होगी। -संपादक ] प्रतिक्रिया - १ चन्द्रकान्त बाली* उपेन्द्रनाथ राय * सुमतितंत्र का शकराजा और उसका कालमान - चंद्रकान्त बाली 'तुलसी प्रज्ञा', खण्ड- १६, अंक-१ (जून १९६०), पृष्ठ - ३५ पर 'सुमतितंत्र का शकराजा और उसका कालमान' नामक लेख छापा गया है । प्रकृत लेखक भी इसी शीर्षक पर चिरकाल से विचार कर रहा है और लिख रहा है ।' टिप्पणी : मेरे समक्ष बृटिश म्यूजियम में सुरक्षित (सैसल बैण्डल सूचीपत्र सन् १९०२ का क्रमांक ३५६४) 'सुमतितंत्र' की फोटो स्टेट प्रति रखी है । उ 'छोटे-मोटे पाठांतरों के अतिरिक्त एक गंभीर पाठान्तर है । यथा ४० १. “ शकराजा ततो पश्चात् वसु रन्ध्र- कृतं तथा ।" २. " शकराजा ततो पश्चात् वसु-चन्द्र-कृतं तथा ।" ४०६ मौर्य संवत् अथवा ४१८ मौर्य संवत् में से कौन-सा वर्ष ग्राह्य है ? इस पर पहले प्रकृत लेखक ने कभी विचार नहीं किया । पूर्व प्रकाशित निबंध पर पुनर्विचार का मुख्य कारण उक्त 'पाठान्तर' है । अस्तु ! इस सुमतितंत्रीय श्लोक की सही-सही व्याख्या तभी संभाव्य है, जब उसपर आश्रित 'सारिणी' को समक्ष रख लें ०३४) * एन. डी. २३, विशाखाइन्क्लेव, पीतमपुरा, बेहली- ३४ ( पिन- ११००३ * ग्राम डाकघर मेटेली, जिला-जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंग), पिन- ७३५२२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रशा www.jainelibrary.org

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