Book Title: Tulsi Prajna 1990 09
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 43
________________ यदि हम इस केवल ज्ञान संख्या को त्रिलोकसार के उपरोक्त उल्लेख ६०५ वर्ष ५ माह और ३६४ वर्ष ७ माह की तरह अविभाजित मान लें । अर्थात् माह संख्या समझें तो उसका कालमान ५४६१ वर्ष ४ माह बनता है जो महावीर निर्वाण तक का कालमान होने से एक हजार वर्ष के योग से ६४६१ वर्ष ४ माह होता है । अर्थात् केवल ज्ञान से कल्की जन्म तक का कालमान ६४६१ वर्ष ४ माह बन जाता है। यूनानी लेखक प्लिनी (Nat V] --21/5) के अनुसार फादर बक्कस से सिकन्दर तक १५४ राजाओं का कालमान ६४५१ वर्ष ३ माह है जो आचार्य नेमिचन्द्र के केवल ज्ञान से कल्की जन्म तक के कालमान ६४६१ वर्ष ४ माह से केवल १० वर्ष १ माह कम है किन्तु एरियन (इन्डिका-१) के उल्लेख अनुसार भारतीय राजा डायोनीसस से सैण्डाकोटस तक १५३ राजाओं के कालमान ६०४२ वर्षों में दो बार की टूटत ३०० + १२० वर्षों के योग के समतुल्य है । सैण्ड्राकोटस महाभदरेन राजवंश का १५३ वां राजा था । महाभद्रेन राजवंश वर्तमान हरियाणा, राजस्थान और सिंध (पाकिस्तान) के क्षेत्र पर शासन करता रहा और उसकी राजधानी पारिभद्र को वर्तमान नोहर-भादरा के रूप में पहचाना गया है। गणनानुसार सैण्ड्राकोटस विक्रम पूर्व २५३ वर्ष (अथवा ३१० ईसा पूर्व) गद्दीनशीन हुआ और उसकी गद्दीनशीनी से एक हजार वर्ष पूर्व अर्थात् १२५३ विक्रम पूर्व महावीरनिर्वाण हुआ । तदनुसार १२५३+ ५४६१ वर्ष ४ माह --६७१४ वर्ष ४ माह पूर्व विक्रम केवल ज्ञान का कालमान बनता है जो राजा डायोनीसस का भी काल हो सकता है। तीर्थकर आयुमान (महावीर निर्वाण तक) भी इससे समतुल्य दीख पड़ता है किन्तु उसमें के अनेकों कालान्तर लुप्त हो चुके हैं । संदर्भ: १. वाल्मीकि रामायण (उत्तरकांड, सर्ग-७३) में एक श्लोक निम्न प्रकार है "अप्राप्त यौवनं बाले पंचवर्ष सहस्रकम् । अम्ले कालमापन्नं मम दुःखाय पुत्रकम् ॥" कि मेरा बालक पाच वर्ष सहस्रक आयु में ही काल कवलित हो गया और बिना युवा अवस्था पाये ही मृत्यु को प्राप्त होकर मुझे दुःखी बना गया। यहां 'पंचवर्ष सहस्रकम्' की टीका करते हुए पं० रामाभिराम लिखते हैं---'पंचवर्ष सहस्रकं वर्ष शब्दोत्र दिनपरा किञ्चिन्न्यूनचतुर्दश वर्ष मित्यर्थ; कि यह वर्ष - दिन संख्या है। २. एरियन की इन्डिका का अंग्रेजी अनुवाद 'दी इण्डियन एण्टिक्वेरी' (वर्धमान ग्रंथागार क्रमांक ८१ ६४) में पृष्ठ ८५ से १०८ तक छपा है जिसमें पृष्ठ ६० पर उक्त विवरण उपलब्ध है। 000 खण्ड १६, अंक २ (सित०, ६०) ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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