Book Title: Tulsi Prajna 1990 09
Author(s): Mangal Prakash Mehta
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 40
________________ "सो उम्मग्गाहि मुहो चउम्मुहो सरिवास परमाऊ। चालीस रज्जओ जिदभूमी पुच्छइ समंतिगणं ॥ अम्हाणं के अवसा णिगगंया अस्थि केरि सायारा। णितणवत्था भिक्खाभोजी जहसत्थमि दिवयणे ॥ तप्पाणिउड़े णिवडिव पढमं पिरंतु सुक्कामिदिगेज्झं । इवि णियमे सचिवकदे चत्ताहारा गया मुणिणो ॥" वह कल्की उन्मार्गाभिमुखी है और उसका नाम चतुर्मुख तथा वय ७० वर्ष है। उसका राज्य ४० वर्ष रहा । भूमि को विजय करते हुए उसने अपने मंत्रियों से पूछा कि अब कोन हमारे वश में नहीं रहा ? मंत्री बोले-निर्ग्रन्थ साधु ! उसने पूछा--वे कौन हैं ? मंत्री बोले-वे धन-वस्त्र हीन हैं और भिक्षावृत्ति से जीवन-यापन करते हैं । कल्की ने आदेश दिया कि उनके हाथों में आई पहली भिक्षा 'कर' के रूप में ले ली जाय । इस पर मुनिगण आहार छोड़कर चले गए। स्पष्ट है कि यह कल्की कोई ऐतिहासिक राजा है जो अपने राज्य से निर्ग्रन्थसाधुओं को निकाल बाहर करने को सचेष्ट रहा और वह अपनी कठोरता के कारण हो जैन-ग्रंयों में उल्लिखित हुआ है जबकि कल्कि-पुराण आदि में उल्लिखित कल्की युग-युग में होने वाले अत्याचार, अन्याय और अधर्म के विनाश के लिए दैवीय सहायता के रूप में परिकल्पित है। भागवत में जहां २४ अवतारों का वर्णन है, वहां लिखा है कि २१ वीं बार कलियुग आ जाने पर मगव में देवताओं के द्वेषी, दैत्यों को मोहग्रस्त बनाने वाले जिन पुत्र बुद्ध का अवतार हुआ और उसके पश्चात् जब कलियुग समाप्त होने लगा और शासक वर्ग प्रजा को लूटने लगे तो विष्णुयश के घर कल्की पैदा हुए ---- "ततः कलो सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुर द्विषाम् । बुद्धो नाम्नाजिनसुतः कोकटेषु भविष्यति ॥ अथासो युग संध्यायां दस्यु प्रायेषु राजसु । जनिता विष्णुयशो नाम्ना कल्किर्जगत्पतिः ॥" यही बात अग्निपुराण में लिखी है कि 'कलियुग का अन्त होने के समय सब लोग वर्णसंकर हो जाएंगे । वे लुटेरे, शोल रहित और वेद-विरूद्ध आचरण करने वाले होंगे । सनकी रुचि धर्म की तरफ से हटकर अधर्म की तरफ चली जाएगी। म्लेच्छ राजागण मनुष्यों का बहुत बुरी तरह शोषण करेंगे । तब कल्की भगवान् श्री विष्णुयश के यहां प्रकट होंगे और याज्ञवल्क्य उनके पुरोहित होंगे। वे शस्त्र लेकर अपनी शक्ति से म्लेच्छों को नष्ट कर डालेंगे। इसके पश्चात् जब पृथ्वी पर फिर से सत्युग स्थापित हो जाएगा तब भगवान् कल्की पुनः अपने लोक को चले जाएंगे।' आचार्य नेमिचन्द्र का त्रिलोकसार आचार्य नेमिचन्द्र का ग्रन्थ 'त्रिलोकसार' करणानुयोग -लोक-अलोक और युग परिवर्तन विषय का अद्भुत ग्रन्थ है। विक्रमी संवत्सर की ग्यारहवीं सदी के पूर्वार्द्ध में लिखा गया यह ग्रन्थ नि:संदेह 'तिलोय पणति', 'जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति' आदि पूर्व ग्रन्थों पर तुलसो प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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