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में मा जाते है । द्विदलों की अभक्ष्यता से हमारे आहार का एक प्रमुख प्रोटीनी घटक ही समाप्त हो जावेगा। शास्त्रीय दृष्टि से, ऐसे खाद्यों में सूक्ष्म जीवाणु उत्पन्न हो जाते हैं। यह तो वातावरण एवं किण्वन का प्रभाव है। आशाधर ने इस विषय में कुछ उदारता दिखाई है । बे पकाये हुए दूध से बने दही-मछे से मिश्रित द्विदल को भक्ष्य मानते हैं। फलतः द्विदल एवं दही-मट्ठा मिश्रित द्विदल खाद्यों की अभक्ष्यता पुराने या विकृत द्विदलों पर ही लागू माननी चाहिये, नये द्विदलों पर नहीं । अतः द्विदल के बदले विकृत या पुराने द्विदल' शब्द का उपयोग करना चाहिये। फिर भी, यदि चलित-रस की अभक्ष्यता है, तो आशाधर का मत खंडित ही रहेगा। यदि किण्वन से प्राप्त पदार्थों की कोटि एक ही बनाई जाती, तो अधिक अच्छा था। इससे अभक्ष्यों को संख्या कम होगी।
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. लाडनूं
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