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है। जीव विचार प्रकरण के अनुसार प्रत्येक वनस्पति फल, फूल, त्वचा, मूल, पत्र और बीज के रूप में पाई जाती है और इसका भक्ष्यभाग प्रायः पृथ्वी, मिट्टी, भूमि या जल-तल के ऊपर ही होता है । ये १२ प्रकार की होती हैं। इसके विपर्यास में, प्रायः अनन्तकाय वनस्पति मिट्टी के अन्दर उत्पन्न होते हैं, कंद रूप में होते हैं । पर, इनके कुछ लक्षण ऐसे भी हैं जो इनके मिट्टी के ऊपर उत्पन्न होने पर भी लागू होते हैं । इनके २० भेद हैं । इसके नाम व उदाहरण सारणी २ में दिये गये हैं। इससे पता चलता है कि सामान्यतः प्रत्येक वनस्पति की १,२,६,७,९ एवं १२ कोटियों के २१३ वनस्पतियों के विभिन्न अवयव हमारे लिये भक्ष्य माने जा सकते हैं । पर इनमें से बहुबीजी ३३ प्रकारों को दसवीं सदी के बाद अभक्ष्य ही बताया गया है। इनमें तेंदू, कथा, बेल, बिजौरा, आंवला, फणस, अनार, पंचोदुंबर, पीपर,सरसों, नीम और अनेक अप्रचलित वनस्पतियां समाहित हैं। अनेक वृक्षों की त्वचादि खाद्य के रूप में तो नहीं, पर औषधों के काम आती है। इनमें कुछ (उदुंबर) की अभक्ष्यता तो अनेक कारणों से मानी गई है, पर अनेकों के उपयोग सामान्य हैं चाहे वे सैद्धांतिक दृष्टि से अमक्ष्य ही क्यों न हों । शंकर' ने बताया है कि अनन्तकायों के २० भेदों के बावजूद इस कोटि की ३२ सुज्ञात
सारणी २ : प्रत्येक और साधारण वनस्पतियां ब. प्रत्येक वनस्पति । १२
ब. अनन्तकाय बनस्पति:२० १. वृक्ष
१. कंद प्याज, लहसुन, आलू आदि (अ) एकबीजी-आम आदि ३० २. अंकुर अंकुरित दालें
(ब) बहुबीजी-तेंदू, कैंथा आदि ३३ ३. किसलय नई रक्तिम पत्तियां २. गुच्छ : बेंगन, अरहर आदि ४६ ४. भूमिस्फोट कुकुरमुत्ता ३. गुल्म (झाड़ीदार) : गुलाब, २४ ५. आद्रक त्रिक अदरख, हल्दी, कचूर
मोगरादि ६. गाजर गाजर ४. वलय (गोलाकार) : ताड़, १७ ७. मौथा मोथा, नागर मौथा
चीड़ आदि ८. बथुआ की भाजी बथुमा, पालक आदि ५. लता : पद्म, नाग आदि १० . थेग
भाजीदार कंद ६. बेल : पान, तरबूज, जरामासी ४१ १० पल्लक विशिष्ट शाक ७. गांठ : गन्ना, वेत्र, वंशादि १६ ११. गडूची गिलोय (औषधि) ८. तृण : दर्भ, कुश, अर्जुन आदि १८ १२. गुग्गुल औषधि ६. हरिन (पत्र शाक) : बथुआ, २८ १३. छिन्नरुह खल्लड़, खरसान १०. जलरुह : काई, कुमुद आदि २७ १४. थोर कांटेदार औषध वृक्ष ११. कुहण (अंकुरित) : कुकुरमुत्ता, १० १५. कुमारी पौधे
कुणक १६. बेल शतावरी, सुआवेल १२. औषधि (अन्न) : गेहूं, धान, २६ १७. पणक फंगस
मूंगादि १८. शैवाल काई
-- १६. कोमल फल कच्चे फल ३६६ २०. गूढ़ शिर जूट, सन आदि
तुलसी प्रज्ञा
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