Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

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Page 11
________________ २. श्रुतघर और सारस्वताचार्य ३ प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य और ४. आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक | १. तीर्थङ्कर महावीर और उनकी देशना यह प्रथम खण्ड ११ परिच्छेदों और लगभग ६४० पृष्ठों में समाप्त है। इसकी विवेच्य विषय - सामग्री बहुवक्तव्य एवं प्रचुर है। इसीसे इसमें कई परिच्छेद रखे गये हैं । इन परिच्छेदों का वर्ण्य विषय नीचे प्रस्तुत हैप्रथम परिश्छेद: तीर्थङ्कर-परम्परा और महावीर इस परिच्छेद में मानव जीवनका क्या महत्त्व है और उसके लिए धर्म दर्शनकी क्यों आवश्यकता है, इसका प्रतिपादन करते हुए उनके उपदेशक तीर्थङ्करों की परम्परा और इस परम्परा में हुए आद्य तीर्थंकर ऋषभदेव, २१वें तीर्थंकर नमि, २२वें तीर्थंकर नेमि और २४वें तीर्थंकर पार्श्वनाथका पुरातत्वके आलोकमें दिग्दर्शन, पार्श्वनाथको ऐतिहासिकता तथा तोर्थंकर परम्पराको अन्तिम श्रृंखला २४वें तीर्थंकर महावीरपर विभिन्न उपशीर्षकों द्वारा विशद प्रकाश डाला गया है । द्वितीय परिच्छेव जन्म-जन्मको साधना इसमें महावीरका अगणित पूर्व पर्यायोंमें पत्तन और पतनके बाद पिछली अनेक पर्यायोंमें उत्थान प्रतिपादित है । पुरुरवा भोलको पर्याय में वे कुछ सम्हलते हैं, किन्तु फिर उन्हें अनेक जन्मोंमें गोते लगाने पड़ते हैं, सुयोगसे सिंहकी पर्यायमें जो दशवीं पूर्व पर्याय थी, उनका उत्थानकी ओर झुकाव होता है। कनकोज्वल, हरिषेण, प्रियमित्र चक्रवर्तीको पर्यायोंमें उत्कर्ष करते हुए जब वे नन्दभवमें आते हैं, तो तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध कर जीवनकी चरम उपलब्धि - तीर्थंकरपदप्राप्ति के बीज बोते है, इस सबका रोचक एवं प्रामाणिक वर्णन किया गया है । 7 तृतीय परिच्छेद: समसामयिक परिस्थितियाँ : महान् विचारक एवं सम्प्रदाय इस परिच्छेद में महावीर के जन्मसे पूर्व देश और समाजकी कैसी स्थिति थी, राजनीतिक वातावरण कैसा था, आर्थिक दशा कैसी थी, विभिन्न विचारकों एवं सम्प्रदायोंकी गतिविधियाँ कैसी हो रही थीं, आदिका विशद निरूपण है । चतुर्थं परिच्छेद: तीर्थंकर महावीर की जन्मभूमि, जन्म एवं किशोरावस्था इसमें गणतंत्र वैशाली, उसके उपनगर और महावीरकी जन्मभूमि, कुण्डग्राम, वैशाली गणतंत्र के नायक चेटकं, कुण्डग्रामके अधिपति और महावीर के पिता सिद्धार्थ, माता त्रिशला चेटक ओर : सिद्धार्थके सम्बन्ध, त्रिशलाका स्वप्नदर्शन, आमुख : १५ ,

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