Book Title: Tirth Saurabh
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 147
________________ SRIMINAYADAM - पर्यावरण का आधार : अहिंसा-भावना __ डॉ. कपूरचंद जैन रीडर एवं अध्यक्ष संस्कृत विभाग, श्री कुन्द कुन्द जैन (पी.जी.) कॉलेज, खटौली वैज्ञानिक विकास ने हमें जो दिया है उनमें कि इस गतिमयता के पीछे किसी ईश्वर का एक प्रदूषण भी है। आज पर्यावरण की सुरक्षा हाथ है, पर जैन-दर्शन ऐसी किसी सत्ता में जैनधर्म के सिद्धांतो को अपनाने से सरलता सिद्ध विश्वास नहीं करता, सृष्टि अनादि और अनन्त होगी। अतः जैनधर्म के सभी सिद्धान्त पूर्णतः है। सृष्टि का प्रत्येक कण अपनी स्वतन्त्र सत्ता वैज्ञानिक हैं, प्रकृति का संतुलन बनाये रखने लिये है, और स्व-स्वरूप में स्थित है। के लिए उनका सम्यक् पालन विशेष उपकारी पर्यावरण शब्द 'परि-समन्तात् आवरणम् पर्यावरण' दो शब्दों से मिलकर बना है अर्थात् ____नगरीकरण, औद्योगीकरण यातायात के जो सब औरसे सृष्टि को व्याप्त किये है, दूसरे आधुनिक यान्त्रिक साधन, उनकी तेज ध्वनि, शब्दों में वातावरण को ही पर्यावरण कह सकते अणुशक्ति का प्रयोग, दूषित वायु, दूषित जल, हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, ध्वनि (आकाश) दूषित खाद्य पदार्थ, पृथ्वी की निरन्तर खुदाई, ये पाँच महाभूत पर्यावरण के मूल आधार हैं। वनों का काटा जाना, रेडियोधर्मी, जैविक और ये अपने निश्चित अनुपात में अनादि से स्थित रासायनिक कचरा, मांसाहार की बढती प्रवृत्ति, हैं। मनुष्य कभी धर्म के नाम पर, कभी विज्ञान पारस्परिक वैमनस्य, अर्थलोलुपता आदिने मनुष्य के नाम पर तो कभी प्रगति के नाम पर इनसे को उस चौराहे पर लाकर खडा कर दिया है छेडछाड़ करता है आजकल यह छेडछाड कुछ जहाँ से सभी रास्ते विनाश की ओर ही जाते ज्यादा ही बढ़ गई है फलतः ये महाभूत प्रदूषित हैं। क्या आप जानते हैं कि आज ओजोन-परत हो रहे हैं। . टूट रही है, जिससे पृथ्वी पर सभी जीवधारियों प्रदूषण की कोई सर्वसामान्य परिभाषा देना का जीवन खतरे में पड गया है। पृथ्वी पर सम्भव नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान आक्सीजन का स्रोत यही ओजोन हैं। यही सूर्य अकादमी (1966) के अनुसार - 'मिट्टी, पानी, की पराबैंगनी विषैली किरणो को रोकने का वायु, पौधे, पेड और जानवर मिलकर पर्यावरण काम करती है। यदि सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी या वातावरण का निर्माण करते हैं-जब एक पर आयें तो त्वचा का कैंसर, आंखो के अनेक सीमा से अधिक विकास के लिए प्रकृति का रोग आदि हो सकते हैं। उपयोग किया जाता है, तो इस पर्यावरण में जैन-दर्शन और विज्ञान के अनुसार सृष्टि कुछ परिवर्तन होता है, यदि इन परिवर्तनों की का एक निश्चित संतुलन है। सारी प्रकृति तालबद्ध प्रक्रिया का प्रकृति के साथ सामंजस्य नहीं किया तरीके से चल रही है। कुछ लोग मानते हैं जाता तो उससे ऐसा असंतुलन पैदा हो सकता રજતજયંતી વર્ષ : ૨૫ તીર્થ-સૌરભ १२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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