________________
मेरी
अभिलाषा
हरी भरी धरती को कभी दुषित मत होने दो।
दो ॥
अब सुख 'की चैन से सबको जीने दो ॥ प्रदुषण को दूर कर, शुद्ध हवा में रहने दो। मंत काटो वृक्ष अब, नये वृक्ष लगाने समय की मांग अब पशु पक्षियों को गले लगाने दो। बेकसुर पशु पक्षियों को अब मत मारने दो ॥ बढती जनसंख्या पर काबू पाना ये नारे अब लिखने दो । साक्षरता का बीडा उठाकर, उसको पार लगाने दो ॥ पशु-पक्षियों की संख्या बढे तो उसको मत रोकने दो ।
उनका मिलता रहे गोबर उसे अब खेतों में डालने दो ॥ फिर अन्न के भण्डार भर कर सुख चैन से जीने दो ।
फिर इस हरी-भरी धरती को दुषित मत होने दो ॥ अब मछलियों को मत मारों, पानी में रहने दो। स्वच्छ, उसे अब पीने दो ॥
तो जल रह जायेगा
Jain Education International
-
और गायों की सेवा करने में अपना मन लगाने दो।
अब तो इस धरती पर पुनः घी दुध की नदियां बहाने दो ॥ बुचडखाने नहीं गौशालाएं खोलने दो ।
शुद्ध हवा शुद्ध जल और शुद्ध प्रकाश में रहने दो ॥ दम घुटता दूषित वायु एवं ध्वनी प्रदुषणसे अब उससे दूर रहने दो।
मिले ज्ञान का प्रकाश, प्रेम की गंगा बहने दो ॥ मिले चारों ओर शुद्ध वातावरण यही प्रार्थना करने दो।
इस धरती का है शृंगार अब पर्यावरण को पुनः आने दो ॥ और इस पावन धरती को स्वर्ग में बदलने दो
अब
-
રજતજયંતી વર્ષ : ૨૫
रचयिता : उत्सव जैन
मु. पो. नौगामा ता. बागोदरा, जि. बांसवाडा (राज) ३२७६०१
For Private & Personal Use Only
તીર્થ-સૌરભ
૧૫૫
www.jainelibrary.org