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ग्रंथ प्रारंभिक धर्म विधान, विशेषतः हस्तलिखित रखने के विविध उपाय किए गए, तब से अब कल्पसूत्र, कर्मसाहित्य, ब्रह्माण्ड मीमांसा और तक जैन परम्परा अक्षुण्ण रही है। इसलिये भाषा जैन सिद्धांत संबंधी हैं और यदि हम केवल के आधार पर ग्रंथो को पृथक या श्रेष्ठ माने संस्कृत और प्राकृत ग्रंथों की बात करें तो ऐसे का, वर्तमान संदर्भ में, कोई आग्रह नहीं है। ग्रंथों की संख्या बहुत ही कम हैं जो भारत इस लेख का तात्पर्य तो केवल यह बतलाना और भारत से बाहर पूर्णतः अज्ञात हैं। है कि ये ग्रंथ कितने पुराने हैं और पुनर्लेखन महत्वपूर्ण गुजराती हस्तलिखित ग्रंथ · द्वारा विभिन्न भाषाओं तथा भिन्न प्रकारों से ये
ब्रिटिश लाइब्रेरी के संग्रह में गुजराती जैन किस प्रकार जीवित रखे गए हैं। साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। यह 14वीं सुनिश्चित जैन ग्रंथों के अतिरिक्त यह भी - 15वीं शताब्दी से लेकर अबतक का यानी भलीभांति विदित है कि भारत में भी प्रायः सभी मध्यकालीन समय का है और सभी प्रकार का __ जैन पुस्तकालय या भंडार, ऐसी सामग्रियों का है। जैसे, टीका-टिप्पणी, भजनावली, कथाएं भी संग्रह करते हैं जो अन्य मतों (यथा हिन्दू आदि। यह इस कारण महत्वपूर्ण है कि भारत धर्म, बौद्ध धर्म) से संबंधित हैं। जब हम के बाहर जैन परम्परा के इन पक्षों का अभी हस्तलिखित ग्रंथों की बात करते हैं तो पता तक उतना अध्ययन नहीं हुआ है, जितना होना । चलता है कि जैनियों ने धर्म-निरपेक्ष दृष्टिकोण चाहिए।
अपनाया है अर्थात् जैन-समाज, विशेषतः मुनियों ___ जिन्हें इस क्षेत्र में रुचि है उन्हें ब्रिटिश या साधुओं की दृष्टि में ज्ञान का कोई भी पक्ष लाइब्रेरी की इस सामग्री को मद्देनज़र रखना पराया या उपेक्षणीय नहीं रहा है। पड़ेगा क्यों कि किसी भी यूरोपीय संग्रहालय यह बात तकनीकी साहित्य के संबंध में में इतनी बड़ी संख्या में गुजराती जैन पांडुलिपियों विशेष रूप से दृष्टव्य है। ब्रिटिश लाइब्रेरी के का संग्रह नहीं है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण संग्रह में इन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व व्याकरण, बात यह है कि अब तक जैन-परम्परा प्रायः कोशकला, इन्दोविधान, काव्यरचना, गणित या अक्षुण्ण रही है। ब्रिटेन में रहनेवाले और गुजराती ज्योतिष विद्या में देखा जा सकता है और जाननेवाले जैनों को इन ग्रंथों में अधिक रुचि सूचिपत्र के 11वें खण्ड में इनकी विवेचना की होगी। कारण, आखिरकर यह उनकी पैतृक गई है। यही विधि अत्यन्त ख्यात तथा मूल परम्परा के मूल पक्ष के साथ ही साथ उनकी कविताओं के लिए भी अपनाई गई हैं। जैसे, वर्तमान धर्मपरायणता भी है।
कालिदास काव्य। ये सर्वमान्य भारतीय परम्परा सूचीपत्र के प्रत्येक खण्ड में यह बतलाया की हैं, जिन्हें जैनियों द्वारा भी अपना बताया गया है कि जबसे ये धर्म सिद्धांत अर्धमागधी गया है तथा जिन पर विभिन्न तरीकों से में लिखे गए और जिन्होंने इन ग्रंथों की रचना टिप्पणियां की गई हैं और ये टिप्पणियां किसी की थी, उनके द्वारा इन सिद्धांतों को जीवित भी तरह से कमतर नहीं हैं। बल्कि ये बहुधा
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૧૫૮ | તીર્થ-સૌરભ
२४तनयंती वर्ष: २५
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