Book Title: Tirth Saurabh
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 174
________________ आगे यह भी बताना उसे सुने जग का... बिल्कुल सब का पर छान लें वह सब सत्य की चालनी से और व्यर्थ की वस्तु का त्याग करके सिर्फ सत्य उतना ही स्वीकार करें यदि संभव हो तो उसके मन पर यह बिम्बित करें कि हंसते रहें, हृदय का दुःख दबाकर और कहें उसे . . आंसू गिराते वक्त लज्जित नहीं होना। उसको यह भी शिक्षा देना कि तुच्छतावादियों को तुच्छ मानने और चाटुगिरि से सावधान रहने के लिए उसको पूरी रीत से समझाना कि खूब कमाई करें वह ताकद और अक्कल बेचकर - - पर कभी विक्रय करना नहीं। हृदय और आत्मा का धिक्कार करनेवाला का झुंड आया तो अनदेखा करना सिखाओ उसे और बिम्बित करें उसके मन पटल पर जो सत्य और न्याय जागता है उसके लिए पैर जमा कर लड़ते रहें . उसको ममता से रखें पर अधिक लाड़प्यार न करें। .. अग्नि में तपाये व सुलाखे बिना लोहे का मजबूत पोलाद नहीं होता, उसके मनमें यह बिम्बित करें कि अधीर होने का धैर्य और धारण करना चाहिए धीर उसे यदि शौर्य दिखाना हो तो और एक बात कहते रहें उसे कि अपना दृढ़ विश्वास चाहिए अपने आप पर। मुझे क्षमा करें, गुरुजी मैं ज्यादा बोल गया हूँ। बहुत कुछ मांग रहा हूँ. परन्तु देखें जो भी संभव हो, आप अवश्य करें, मेरा बेटा बहुत ही प्यारा बालक है। - अब्राहम लिंकन ૧૬૪ તીર્થ-સૌરભ २४तशयंती वर्ष : २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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