Book Title: Tirth Saurabh
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 172
________________ www ROMANTRA VEMBOV6003076630000000006800Yd अंतमंगल मंगल श्री अरहंत घातिया कर्म निवारे, मंगल सिद्ध महंत कर्म आठों परजारे; आचारज उवजझाय मुनी मंगलमय सारे, दीक्षा शिक्षा देय भव्यजीवनिकू तारे; अठवीस मूलगुण धार जे सर्वसाधु अणगार हैं, मैं नमुं पंचगुरुचरणकू मंगलहेतु करार हैं। १ जैपुर नगरमांहि तेरापंथ शैली बडी बडे बडे गुनी जहां पढे ग्रंथ सार है, जयचंद्र नाम मैं हूं तिनिमें अभ्यास किछू । कियो बुद्धिसारु धर्मरागतें विचार हैं; समयसार ग्रंथ ताकी देशके वचनरूप भाषा करि पढो सूनुं करो निरधार है, आपापर भेद जानि हेय त्यागि उपादेय गहो शुद्ध आतमकू, यहै बात सार है। २ । संवत्सर विक्रम तणूं, अष्टादश शत और; .. चौसठि कातिक वदि दशै, पूरण ग्रंथ सुठौर। ३ [समयसारकी देशभाषामय वचनिका] १६२ तीर्थ-सौरभ तरयंती वर्ष : २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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