Book Title: Tirth Saurabh
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

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Page 163
________________ Anwww | शाकाहार आवश्यक क्यों ? प्रा. यशवंत कु. गोयल अकोल अहिंसा हमारे जैन धर्म का प्राण है। लेकिन शास्त्री विदेश जाते थे तो शाकाहार ही लेते थे। हम और हमारा सामाजिक जीवन कैसा है यह महात्मा गाँधी विदेश में शिक्षा के लिये गए देखना मैं आवश्यक समझता हूँ। जैन धर्म कहता । तब उनसे उनकी माता ने तीन वचन लिये थे है कि आप तीन मकारों से दूर रहो - मद्य, - मांस, मदिरा और पर स्त्री त्याग जिसका पालन मांस और मधु इसका पालन करना है। जिस उन्होंने आजीवन किया। मांसाहार से अनेक रोग से हमारा आहार शुद्ध हो। कहा है कि - होते हैं। नीति भ्रष्ट होती है। आजकल जो जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन।। भ्रष्टाचार, लूटमार, व्यभिचार दिखाई देता है, वह जैसा पीवे पानी, वैसी होवे वाणी। खान-पान भ्रष्ट होने का ही फल है। आचार्य हमारा खान-पान यदि शुद्ध हो तो हमारी विद्यासागरजी ने अमरकंटक में अहिंसा रैली भाषा, विचारधारा सृजनशील रहेगी। दुःख की की। उसका उद्देश्य शाकाहार का प्रचार करना बात है कि हमारा युवा समाज विदेशियों के और मांसाहार त्याग तथा मांस उत्पादन करके खान पान की नकल कर रहा है यह एक फैशन जो विदेश में भेजा जाता है उसका विरोध करना हो गया है। यह था। आजकल हमारे व्यापारी मित्र भी शाकाहार की जगह मांसाहार और मदिरापान मिलावट करके कभी मांसयुक्त दवाइयों का हो रहा है। भारत में अनेक धर्म हैं। कोई धर्म व्यापार करते हैं तो हमें कलंकित होना पड़ता में दूसरों के दिल दुःखाकर व्यवहार करना है। फैशन के नाम पर आजकल कई देशीबताया नहीं है। मानसिक हिंसा को वहाँ स्थान विदेशी वस्तु हमारे शरीर की सुंदरता बढाती नहीं है। फिर प्रत्यक्ष पशुओं की हिंसा करके तो नहीं परन्तु कई रोग पैदा करती है। इसलिये मांस खाने में क्या मतलब? नैसर्गिक जीवन जीना हमारे लिये उपकारी है। हमारा अज्ञानी समाज अभी भी देवी आजकल भ्रष्टाचार की नदियाँ उत्तर से देवताओं को बलि दिये बगैर प्रसन्न नहीं होता दक्षिण तक बह रही है। बड़े-बड़े नेता इसमें उनका जीवन सफल नहीं होता। शाकाहार क्यों? फँसे हुए है। फिर हमारे युवा पीढी पर, राजनीति इस बारे में जैन धर्म और शाकाहार इस विषय पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। जैन शाकाहारी है, में कहा जाता है कि यह समझाने की जरूरत नहीं फिर भी हमारे थोड़ा सा खून कपडे को लगा लो वह नवयुवक सत्संग न होने से बिगड़ जाते हैं। अपवित्र माना जाता है। फिर मांस का भोजन एक जैन युवक जब विदेश जाता है और वहाँ करने से चित्त निर्मल कैसे होगा। लाल बहादुर होटल में मांसाहारी थाली की मांग करता है ર૧૪૮: : યંતી વર્ષ : ૨૫ તીર્થ-ઍરભ | ૧૪૫ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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