Book Title: Tirth Saurabh
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 150
________________ पानी का स्तर नीचे जा रहा है। समुद्र बढ रहे हैं। यदि आवश्यकतायें कम करें, वनस्पतिकाय के जीवों की हिंसा से विरत हों तो इस असन्तुलन से बचा जा सकता है। प्राणवायु शुद्ध - हो सकती । वनों के विनाश से हमारे हृदय क्रूर होते जा रहे हैं। आयरलैन्ड के अलस्टर क्षेत्र के निवासियों की आपराधिक प्रवृत्ति के कारणों की खोज करने पर पाया गया कि'उनकी हिंसात्मक प्रवृत्तियों का कारण वहाँ की धरती का लगातार वन-विहीन हो जाना है ।' वन हमारी प्राणवायु के भंडार है । एक आदमी को प्रतिदिन कम से कम 16 किलो आक्सीजन चाहिए। इतनी ऑक्सिजन के लिए 50 वर्ष की आयु और 50 टन वजन वाले 5-6 वृक्ष चाहिए। दूसरे शब्दों में 5-6 वृक्षों ૧૩૨ को काटना एक आदमी को प्राणवायु से वंचित कर देना है। वास्तव में दम घोटकर उसकी हत्या कर देना है। कर्तव्य उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथैः । न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥ इस प्रकार स्थावर हिंसा से विरत होने के अभ्यास से पर्यावरण का संरक्षण भली प्रकार से हो सकता है। त्रस हिंसा का त्याग करने पर शराब, मांसाहार का निषेध होगा जिससे पशु- सम्पदा नष्ट नहीं होगी और प्रकृति का सन्तुलन बना रहेगा । व्यक्ति के इस हिंसा से विरत होने पर उसका मन पवित्र होगा, पवित्र मन के होने पर झूठ, चोरी, कुशील आदि पापों से बचा जा सकेगा तब सच्चे अर्थो में मनुष्यमनुष्य होगा और पर्यावरण का संरक्षण भी । आइये हम संकल्प करें कि हम हिंसा से विरत होगें और पर्यावरण का संरक्षण करेंगे। इस लोक में एसी कोई वस्तु नहीं है, जिसे मनुष्य अपने उद्यम से प्राप्त न कर सके। 'असम्भव' शब्द केवल मूर्खों के कोष में ही मिलता है । नेपोलियन की डायरी में 'असम्भव' जैसा कोई शब्द ही नहीं था । તીર્થ-સૌરભ जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ । यदि गहरा गोता लगाकार भी समुद्र में से मोती नहीं निकाल सकते तो समझना चाहिए कि सफलता के लिए पूरे मन से उद्यम नहीं किया गया। भाग्य पर विश्वास रखकर पुरुषार्थ न करने से आदमी हतोत्साहित होता हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only રજતજયંતી વર્ષ : ૨૫ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202