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ऐलक पन्नालालजी, आत्मलीन साधक श्रीमद् साधना केन्द्र के संस्थापक सोने श्रीगुरुजी का राजचन्द्रजी, मौन साधकश्री दीपचन्दजी वर्णी, सत्कार्य भी सहज भुलाया नहीं जा सकता. जैन संस्कृति संघ सोलापुर के संस्थापक ब्र. अपनों के बीच 'साहबजी' के नाम से ख्यात जीवराज गौतमचन्द दोशी, क्रान्तिकारी सोने श्रीगुरुजी की स्वामी आत्मानंद बनने तक समाजसुधारक ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी जिनवाणी की यात्रा सुगम नहीं थी. सात समंदर पार तक को प्रकाश में लाने के लिये जूझने वाले जिन धर्म की महती प्रभावना करने के पहले बुद्धिलाल श्रावक, आगम की रक्षा के लिये अंत अपने संकल्प की पूर्ति के लिये उन्होंने कितना तक तत्पर रहे ब्रह्मचारी कपिलजी कोटड़िया, जो घोर परिश्रम किया है और कितने कष्ट सहे हैं बाद में क्षुल्लक चैतन्यसागरजी हुए, सिद्धांत इसका लेखा किसने रखा है? एक अकेला व्यक्ति वारिधि ब्र. रतनचन्द्र मुख्तार आदि आदि अनेक यदि ठान ले तो अपने पुरुषार्थ से, स्व-पर त्यागी व्रती अभी हमारे सामने ही तो हुए है। कल्याण की दिशा में कितना काम करत सकता माताएं भी उदाहरण बनीं -
है, कोबा का यह संस्थान इसका ज्वलंत महिला व्रतियों में गिना जाये तो वर्णीजी के उदाहरण है। इस साधना स्थली को देखकर यह व्यक्तित्व को संवारने वाली धर्ममाता ब्र. चिरोंजा आश्वस्ति मिलती है कि अणुव्रत पालन करनेवाले बाई, आरा के बाला-विश्राम की प्रेरणास्रोत साधकों में भी अडिग संकल्प शक्ति हो सकती ब्रह्मचारिणी मा चन्दाबाई, बम्बई की ब्र. है और वे अपने देशकाल को दूर दूर तक मगनबाई, सोलापुर श्राविका संस्था की संस्थापिका प्रभावित कर सकते हैं। श्राविका संस्था सोलापुरकी पद्मश्री ब्र. पण्डिता सुमतिबाई शाह, आदि संचालिका ब्र. बिद्युल्लता शाह, श्रीमहावीरजी में महिलाओं के उपकारों से क्या समाज कभी शिक्षा-मंदिर की सर्जनहार ब्र. कमलाबाई तथा उऋण हो सकता है? इन सभी माताओं ने भोज में ज्ञान साधना में रत ब्र. विमलाताई मुरावटे अणुव्रतों के ही अनुशासन में बांधकर अपने आदि अनेक ऐसे ही नाम हैं। जीवन का उत्कर्ष और समाज का महान उपकार सम्भावनाएं अनन्त हैंकिया है।
अणुव्रतों का पालन करते हुए स्व-पर ___ इस प्रकार बीसवीं सदी के इतिहास में ज्ञान कल्याण का जो प्रशस्त मार्ग आचार्योने प्रस्तुत प्रसार के क्षेत्र में, साहित्य रचना में और समाज किया है, उसके अंतर्गत साधना करते हुए जीवन सुधार के क्षेत्र में अणुव्रतों का पालन करनेवाले का उत्कर्ष करनेकी अनंत सम्भावनाएं आज के साधकों का योगदान इतना पुष्कल है कि उसका । सामाजिक वातावरण में भी बनी हुई हैं। यदि प्रकाश पूरी इक्कीसवीं सदी को आलोकित करने व्रताचरण व्यक्तित्व के विकास की सीढ़ी है तो में सक्षम सिद्ध होगा।
वह आज भी उस अभिप्राय की पूर्ति में उतना ही उदाहरण वर्तमान में भी हैं
सहायक है जितना पहले कभी था। लेकिन यह वर्तमान में श्रीमद् राजचन्द्र आध्यात्मिक तभी सम्भव है जब अणुव्रतों की महत्ता और -૧૩૬ તીર્થ-સૌરભ
રજતજયંતી વર્ષ : ૨૫
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