Book Title: Tirth Saurabh
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
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कल्याण के लिये उसे खर्च करेगा, तब उसकी सुधारना दूसरे के सुधार का प्रोत्साहन होता है और कमाई में शुद्धता आयेगी। संरक्षक वह है जो अपने । इस प्रकार सुधार का विस्तार स्वयमेव वर्द्धमान ट्रस्ट के कर्तव्यों को ईमानदारी से और श्रेष्ठतम होता जाता है। कहा भी है 'सुधरे व्यक्ति, समाज हितों में पूरा करता है।
व्यक्ति से, उसका असर राष्ट्र पर हो।' संसार में अनंत प्राणी हैं। मनुष्य इन सभी स्वदेशी' के संदर्भ में गांधीजी का एक प्राणियों में श्रेष्ठ हैं। उसके पास बुद्धि-बल है, संस्मरण याद आया है-'गाँवों में विलायती दवायें देहबल है, उपयोग करने की अमोघ शक्ति और क्यों?' सामर्थ्य है। प्रकृति ने उसे श्रम करने के लिये एक बार एक अमरीकी बहन सेवाग्रामदो हाथ दिये हैं और खाने के लिये केवल एक आश्रम में रहने के लिये आई। एक दिन काम मुख दिया है। दोनों हाथों से किया गया अर्जन करते हुए अचानक वह किसी तरह जल गई। निश्चित रूप से अधिक है, तब उसे शेष का सोचा, यहाँ किसी के पास कोई न कोई मरहम यथोचित विसर्जन करना चाहिये। यह वस्तुतः तो होगा ही, इसलिये उन्होंने मरहम मांगा। उसका धर्म बन जाता है।
गाँधीजी ने कहा, 'इस पर मिट्टी लगाओ।' उसने धर्म से समुदाय और समाज में संतोष और ऐसा ही किया और उसे आराम भी मालूम हुआ। सौहार्द का वातावरण पैदा होता है। इसी भावना वह किसी पत्र की प्रतिनिधि थी और भारतीय से प्रेरित होकर गांधीजी प्राय: कहा करते थे, 'जो संस्कृति का अध्ययन करने के लिये इस देश में ईमानदारी से धंधा करते हैं, वे भी देश की सेवा आई थी। इसलिये उसे समझाते हये गाँधीजी बोले. करते हैं। सेवा का दावा करनेवाले लोग भारी 'गाँवों में विलायती दवाओं का उपयोग क्यों किया कुरूप हो सकते हैं और धंधा करके कमाने वाले जाएं? अगर ऐसा हुआ तो हमारे लोग कंगाल बन लोग शुद्ध सेवक हो सकते हैं।'
जायेंगे। मामूली घाव का क्या इलाज हो सकता _ 'स्वदेशी' की ढाल सत्याग्रह होती है, एक है, यह हमें जान लेना चाहिये। उनके स्थान पर तो वह कि जिस चीज के लिये लड़ते हैं, वह झट से तैयार मरहम लगाना मेरे विचार में एक सचमुच सत्य है, और दूसरा यह कि उसका आग्रह प्रकार से आलस्य को ही बढ़ावा देना है। पुराने रखने में अहिंसा का उपयोग होता है। गांधीजी जमाने में हमारे देश की बूढ़ी बहनें 'देशी' दवायें का मानना है कि, 'सत्याग्रही सदा बुराई को भलाई जानती थीं। आज भी ऐसी दवाओं का ज्ञान रखती से, क्रोध को प्रेम से, झूठ को सत्य से और हिंसा हैं, लेकिन अब उसमें कुछ सुधार होना चाहिये। को अहिंसा से जीतने की कोशिश करता है। अगर उन्हें वैज्ञानिक रीति से समझाया जाए तो दुनिया को बुराई से पार करने का और कोई उपाय वे गांवों में लेडी डॉक्टर जरूर बन सकती हैं। नहीं है।' स्वदेशी में आस्था रखनेवाला व्यक्ति यह आप एक शिक्षित महिला हैं। हमारे देश की स्थिति काम दूसरे से नहीं अपितु स्वयं अपने से प्रारम्भ का अध्ययन करने आई हैं, इसलिये आप इन बातों करता है। वह मानता है स्वयं का सुधार अथवा की ओर खास तौर से ध्यान दीजिएगा।' .
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તીર્થ-સૌરભ
રજતજયંતી વર્ષ : ૨૫
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