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“अहिंसा का महत्व वर्तमान विज्ञान में"
| डो. सी. जैन, दिल्ली |
"अहिंसा' शब्द का अर्थ है प्राणियों की हिंसा न करना। इस परिभाषा के अनुसार किसी भी जीव की हिंसा न करना अहिंसा कही जाएगी। यद्यपि यह परिभाषा नकारात्मक ज्ञात होती है, परंतु वास्तव में इस परिभाषा से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राणीमात्र पर करुणा की भावना ही अहिंसा है। अतएव अहिंसा की व्यापकता को समजने के लिए प्राणीजगत का विस्तार जानना आवश्यक है। संसार के प्राणियों का विभाजन अनेक प्रकार से किया गया है - परंतु जैन धर्म के अनुसार प्राणियों को पांच भागों में बांटा गया है - एक इन्द्रिय, द्वि इन्द्रिय, त्रि इन्द्रिय, चऊ इन्द्रिय, पंच इन्द्रिय। "एक" इन्द्रिय जीव जिनमें केवल स्पर्शन इन्द्रिय है जैसे वनस्पतियां, "द्वि" इन्द्रिय जीव जिनमें स्पर्शन एवं स्वाद इन्द्रिय होती है, जैसे "लट", त्रि इन्द्रिय जीव जिनमें स्पर्शन, स्वाद एवं घ्राण इन्द्रिय होती है, जैसे चींटी आदि। चऊ इन्द्रिय जीव जैसे मच्छर, मक्खी, पंच इन्द्रिय जीव जैसे पशु, मनुष्य आदि। वर्तमान विज्ञान के आधार पर जीव-शास्त्रियों एवं वनस्पति शास्त्रियोंने उपर्युक्त सभी प्रकार के जीवों को जीव मान लिया है। अतएव इनमें किसी भी जीव की हिंसा, हिंसा ही कही जाएगी। ___ अब हम विज्ञान के विविध पहलुओं से विचार करके देखेंगे कि अहिंसा का उन विभिन्न विषयों में क्या महत्त्व है।
आधुनिक आयुविज्ञान एवं अहिंसा
पिछले बीस वर्षों में आयुविज्ञान के सम्मुख कुछ विशेष बातें देखने को मिली हैं। मांसाहारी व्यक्तियों को आतों के कैंसर, हृदय रोग, लकवा, गठिया रोग, गुर्दे के रोग अधिक होते हैं। इन व्यक्तियों पर कीटाणुओं के आक्रमण भी अधिक होते हैं। बहुत सी उपर्युक्त बीमारियों की कोई स्थाई चिकित्सा नहीं होती है, जैसे हृदय रोग, कैंसर, गुर्दे के रोग एक बार हो जाये, तो विश्व के किसी भी भाग में पूर्ण चिकित्सा संभव नहीं है। इसके विपरीत शाकाहारी व्यक्तियों को इन रोगों की संभावना कम रहती है। "शाकाहार" भोजन अहिंसा या करुणा की भावना का ही प्रतीक है। अहिंसक व्यक्ति किसी प्राणी को मारकर उसे अपना भोजन नहीं बनाता। यह अहिंसा की भावना ही उस व्यक्ति की इन रोगों से सुरक्षा करती है। अब प्रश्न आता है कि शाकाहारी व्यक्ति फल फूल वनस्पतियां खाता है, तो क्या वह हिंसा नहीं करता। पेड़ पौधों पर लगने वाले फल, फूल, वनस्पतियां आदि मनुष्य या पशु खाते हैं, तो उनमें बीजों का विस्तरण होता है। यह क्रिया पेड़-पौधों की संतति के संरक्षण में सहायक होती है और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखती है। इसलिए पेडों के हित में है। हां, पेडपौधों को काट देने में हिंसा अवश्य होती है। इसलिए युकेलिप्टस अशोक, इमली, आम,
રજતજયંતી વર્ષ : ૨૫
તીર્થ-સૌરભ | ૧૪૧ ;
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