Book Title: Tiloypannatti Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाया : १६-१६ ]
चउरको महाहियारो
जगतीका विस्तार
मूले भारस-मक्के, अटु छिय जोयणाणि निट्ठिा । सिहरे तारि फुढं जनबी रुदास' परिमानं ॥ १६ ॥
भामेर :- आप भरतुर जी फागन
अर्थ: जगती विस्तारका प्रमाण स्परूपसे मूलमें बारह, मध्य में माठ और शिवरपर कार योजन कहा गया है ।। १६ ।।
जगतीकी नींव -
वो कोसा अवगाढा, तेतियमेता हवेदि वज्जमयीं । बहरमचमयी', सिहरे वेरलिय- परिपुण्या ॥१७॥ कोस २
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अर्थ :- मध्य में बहुरत्नोंसे निर्मित जगतीकी गहराई ( नींव ) दो कोस है ।। १७ ।
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और शिखश्वर मणियों से परिपूर्ण वच्चनय
जगती मूलमें स्थित गुफाओंका वर्णन
तीए मूल-बएसे, पुध्यावरदो थ सस-तस गुहा
पर- 'तोरणाहिरामा, अनावि-जिहणा विचित्तपरा ।। १६ ।।
अर्थ:-जगती मूल प्रदेशमें पूर्व-पश्चिम की ओर जो सामान गुफाएं हैं, वे उत्कृष्ट तोरणोंसे रमणीक, अनादि-निधन एवं अत्यन्त अदभुत है || १८ ||
जम्बूदीपकी जगती पर स्थित बेदिकाका विस्तार
जगवी- उपरिम-भागे, बहु-म कणय देविया दिव्या ।
बें कोसा उत्तुंगर, विस्थिष्णा पंच-सय-वंडा ||११||
को २ | दंड ५००
अर्थ : – जगतीके उपरिग भागके ठीक मध्य में दिव्य स्वर्णमय वेदिका है। यह दो कोस ऊँची और पांचसौ ( ४०० ] धनुष प्रमाण चौड़ी है ।। १६ ।।
१. मस्स । २..... मयं । १...... ब चोरला. प. तोरणा
दोरलाई
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