Book Title: Tilakmanjarisara
Author(s): Pallipal Dhanpal, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 43
________________ (9) Vetala's reason for offering his scissors to the king. (10) The puzzled goddess Sri invoking the help of another goddess Bharati, who whispers some advice into her ear, and Sri makes the king's hand free for further action.85 34 (11) The king cuts off his head completely and head-less trunk dances before the goddesses. Then the goddess Bharati restores the head again to the body so that the king is resurrected.66 (12) The boon of a son is granted by the goddess Bharati and not Śri, who requests the king to pray to the former. 67 by 64. ibid. 178 : 65. ibid, 212-214 : तद्गृहाण महीभर्त्तः कर्तरीं मम निःसहाम् । स्वामिद्रोहमसौ दिव्यो न करिष्यत्य सिस्तव ॥ १७८ ॥ तदा लक्ष्मीरमन्देऽस्मिन् सन्देहे पतिता सती । किकार्यत्वजडा सद्यो हृदा सस्मार भारतीम् ॥ २१२ ॥ ततस्त्रिभुवनाधीशैर्धीकृते सेविताऽभितः । प्रत्यक्षीभूय वाग्देवी किञ्चिद्गुप्तं श्रियेऽदिशत् ॥ २१३॥ अथाऽभ्यधत्त भूनाथं श्रीरसौ वीर ! सम्प्रति । त्वत्खड्गोऽयं हृतस्तम्भो यथाभीष्टं विधीयताम् ॥ २१४ ॥ 66, ibid. 215-219 : इत्युक्तिसमकालं स स्वशिरस्तरवारिणा । छित्वा गृहाणेदमिदं वदन् क्षिप्तत्वार्थिनं प्रति ॥ २१५ ॥ द्रागुत्थायाक्षिविक्षेपभ्रूभङ्गादि मुखे सृजन् । श्रियोऽग्रे चारुवारीभिः कबन्धेन मुदाऽनटत् ॥ २१६ ॥ न याति जीवितं यावत्तावल्लक्ष्मीः स्वयं रयात् । धराधवस्य मूर्द्धानं कबन्धस्कन्धगं व्यधात् ॥२१७॥ कमण्डलूजले नै वममृतप्रतिपन्धिना । वाग्देवी तच्छिरोऽसिञ्चत्रणं च बभूव तत् ॥२१८॥ शिरच्छेदोच्छलद्रक्तं सङ्गमङ्गमिलापतेः । स्वयमक्षालयल्लक्ष्मीर्वाग्विक्षेपस्वयं पयः ॥ २१९ ॥ 67. ibid, 224-225 : अहं त्रैलोक्यवस्तूनि तेषामेषा तु जोवितम् । वाग्देवी जगतां देवी वन्दस्वेमां मुदा नृप ॥ २२४ ॥ Jain Education International 2010_05 अथ भूपोऽनमद् वाणीं वाणी चाशिषमब्रवीत् । भविष्यति भवत्सूनुरनूनज्ञानधीरिति ॥ २२५॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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