Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१२०
१२१
१२४
अनुक्रमाङ्क विषय ११८ असुर कुमार आदि दसप्रकार के भवनपतियों के तथा किन्नर
किंपुरुष आदि व्यंतर देवों के एवं ज्योतिष्क देवके इन्द्र का निरूपण सू० २५
५२७-५३० ११९ भवनपति आदि देवों के विषय सुख भोगने के प्रकार का कथन सू० २६
५३१-५३५ ज्योतिष्क देव की गति और काल विभाजकत्वका निरूपण सू० २७ ५३६-५४२ भवनपत्यादि सर्वार्थासद्ध पर्यन्त के देवों के आयुष्य प्रभाव सुख आदि के न्यूनाधिकत्व का निरूपण सू० २८
५४२-५५० __ पांचवां अध्याय १२२ पापकर्मका लक्षण का कथन सू. १
५५१-५५३ १२३ पापकर्मके फलभोग का निरूपण सू० २
५५३-५६१ ज्ञम्नावरण एवं दर्शनावरण कर्मबन्ध का निरूपण सू० ३ ५६१-५६५ १२५ अशातावेदनीय कर्मबन्धके कारण का कथन सू० ४ ५६५-५६७
दर्शनमोहनीय कर्म के बन्धके कारण का निरूपण सू० ५ ५६७-५७१ १२७ सोलह प्रकार के चारित्र मोहनीय एवं नव नोकषाय कर्म के बन्धन के कारण का कथन सू०६
५७१-५७५ नाकायु बंधके कारण का कथन सू० ८
५७५-५७७ १२९ नरकगत्यादि अशुभनाम कर्म बन्धके कारण का कथन सू० ८ ५७७-५७९ १३० नीचगोत्र कर्म के बन्ध के कारण का कथन सू० ९
५८०-५८१ १३१ अन्तराय कर्म के बन्ध के कारण का कथन सू० १० ५८१-५८३
रत्नप्रभादि सात नरक भूमियों का कथन सू० ११ ५८४-५८८ १३३ नरकावासों का निरूपण सू० १२
५८८-५९० १३४ नारक जीवों के स्वरूप कथन सू० १३
५९०-५९७ १३५ नारक जीवों के परस्पर में दुःखोत्पादन का कथन सू० १४ ५९७-६०१
नारकों को संक्लिष्ट असुरों के द्वारा दुःखोत्पादनका निरूपण सू० १५ ६०१-६०६ १३७ नरकावासों के आकार आदिका निरूपण सू० १६ ६०६-६०८
१२६
१२८
१३२
m
mm
m
१३६
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧