Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar SamitiPage 15
________________ अनुक्रमाङ्क ७१ ७२ ७२ ७३ ७४ ७५ ७६ ७७ ७८ ७९ ८० ८१ ८२ * * * * 3 * &a & m ८३ ८४ ८५ ८६ ८७ ८८ ८९ ९० ९१ ९२ ९३ विषय गुण के स्वरूप का निरूपण सू० ३० परिणाम के स्वरूप का निरूपण सू० ३१ तीसरा अध्याय बन्ध के स्वरूप का निरूपण सू० १ बन्ध के चार भेद का निरूपण सू० २ बन्ध के पाँच हेतुओं का निरूपण सू० ३ आठ प्रकार की मूल कर्म प्रकृति का निरूपण सू० ४ उत्तर प्रकृति बन्ध का निरूपण सू० ५ ज्ञानावरण कर्म प्रकृति के भेदों का निरूपण सू० ६ दर्शनावरण कर्म प्रकृति के भेदों का निरूपण सू० ७ वेदनीय कर्म के भेद का निरूपण मोहनीय कर्म के अठाइस प्रकरता का निरूपण सू० ९ आयुष्क कर्म के भेद का निरूपण सू० १० नाम कर्म के बयालीस भेदों का निरूपण सू० ११ गोत्र कर्म के दो प्रकार का निरूपण सू. १२ अन्तराय कर्म के पांच भेदों को निरूपण सू० १३ ज्ञानावरण आदि कर्म की स्थितिबन्धका निरूपण सू० १४ मोहनीय कर्मके स्थितिबन्धका निरूपण सू० १५ नाम कर्म और गोत्रकर्म के स्थितिबन्धका निरूपण सू० १६ आयु कर्मी उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण सू० १७ वेदनीयकर्मकी जघन्य -स्थितिका निरूपण सू० १८ नाम गोत्रकर्म की जघन्य स्थितिका निरूपण सू० ज्ञानावरणीय आदि कर्मों की स्थितिका निरूपण सू० २० १९ अनुभागबन्धका निरूपण सू० २१ प्रदेशबन्धका निरूपण सू० २२ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧ पृष्ठाङ्क २३६- ३३० ३३०-३३८ ३३९-३४८ ३४८ - ३५२ ३५२-३५७ ३५८-३६० ३६०-३६५ ३६५-३६८ ३६८-३६९ ३७० ३७१-३८५ ३८६-३८७ ३८७-३९८ ३९९-४०० ४०० -४०२ ४०३-४०४ ४०५-४०६ ४०६ -४०७ ४०७-४०८ ४०९ ४१० -४११ ४११-४२१ ४२२-४३०Page Navigation
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