Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुक्रमाङ्क
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विषय
चौथा अध्याय
पुण्य तत्त्वका निरूपण सू० १
पुण्य के नवभेदों का निरूपण सू० २
४२ प्रकारके पुण्यके फलभोग का निरूपण सू० ३ सातावेदनीय कर्मबन्धका निरूपण सू० ४ मनुष्यायुष्यरूपपुण्य कर्मबन्धके हेतु का निरूपण सू० ५ देवायुरूप पुण्यकर्म बंधका निरूपण सू० ६ शुभनामकर्म बन्धके हेतु का निरूपण सू० ७ तीर्थकर शुभनाम कर्म बन्धका निरूपण सू० ८ उच्चगोत्र कर्मबन्धके हेतु का निरूपण सू० ९ पांच महाव्रत सेवन के फलका निरूपण सू० पांच अणुव्रत का निरूपण सू० ११
पृष्ठाङ्क
ईर्यादिक पचीस भावनाओं का निरूपण सू० १२ सर्वव्रत साधारण भावनाका निरूपण सू० १३ समस्त प्राणियों का मैत्रीभाव का निरूपण सू० १४ पांच महाव्रत की दृढता के लिये उपयोगी भावनाओं
का
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
४३१-४३३
४३३-४३५
४३६-४३७
४३८-४४०
४४०-४४२
४४३-४४५
४४६ - ४४८
४४९-४५५
४५५-४५६
४५६-४५८
४५९-४६१
४६१-४६९
४६९-४७८
४७८-४८३
निरूपण सू० १५
४८३-४८९
१६
४८९-४९६
देवों के भेदों का निरूपण सू० भवनपति देव के विशेष दस प्रकार के भेदों का निरूपण सू० १७-४९६-५०१ बाण व्यंतर देवों के आठ प्रकार के भेदों का निरूपण सू०१८ ५०१-५०३ ज्योतिष्क देवों के विशेष भेदों का निरूपण सू०१९
५०४-५०७
कल्पोपपन्न वैमानिक देव के बारह भेदों का निरूपण सू० २० ५०७-५१३ कल्पातीत वैमानिक देवों का निरूपण सू० २१ भवनपति देवों के लेश्या का निरूपण सू० २२ कल्पोपपन्न देवों के इन्द्रादि का निरूपण सू० २३ किन्नर आदि व्यन्तर देव एवं ज्योतिष्कदेव के इन्द्रादिका निरूपण सु० २४
५१३-५१७
५१७-५१९
५२०-५२३
५२३-५२७