Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 16
________________ पहला अध्याय ------........................... ------- ३३---उन्मत्त की तरह सत्-असत् के विवेक से शून्य यदृन्छा ज्ञान को मिथ्याज्ञान-अज्ञान कहा है। ३४-~-नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द (समभिरूढ़ और एवंभूत) ये नय के पाँच भेद हैं। ३५–पहिले अर्थात् नैगमनय के देशपरिक्षेपी और सर्वपरिक्षेपी ये दो भेद हैं, तथा दूसरे शब्दनय के सांप्रत, समभिरूढ़ और एवंभूत ये तीन भेद हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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