Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 20
________________ दूसरा अध्याय ७—जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व-ये तीन पारिणामिक भाव हैं तथा च शब्द ये अस्तित्व, नित्यत्व, प्रदेशत्व आदि भावों का भी ग्रहण होता है। ८–उपयोग, जीव का लक्षण है।। ९-वह उपभोग दो प्रकार का है—ज्ञानोपयोग व दर्शनोपयोग। पहला ज्ञानोपयोग मतिज्ञानादि के भेद से आठ प्रकार का है तथा दूसरा दर्शनोपयोग चक्षुदर्शनादि के भेद से चार प्रकार का है। १०-संसारी और मुक्त अवस्था के भेद से जीव दो प्रकार के हैं। ११-मनसहित संज्ञी और मनरहित असंज्ञी, ये संसारी जीवों के दो भेद हैं। १२–संसारी जीवों के त्रस और स्थावर-ये भी दो भेद १३—पृथ्वीकाय, जलकाय और वनस्पतिकाय ये तीनों स्थावर जीवों के भेद हैं। १४–अग्निकाय, वायुकाय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवों की वस संज्ञा है। १५.---स्पर्शन आदि पाँच इन्द्रियाँ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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