Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 40
________________ चौथा अध्याय १४-ये सब ज्योतिष्क देव मनुष्यलोक में सुमेरुपर्वत की प्रदक्षिणा देते हुए निरंतर गमन करने वाले हैं। १५-घड़ी, पल आदि काल का विभाग इन्हीं चर ज्योतिष्कों द्वारा होता है। १६-मनुष्यलोक से बाहर सब ज्योतिष्क अवस्थित= . स्थिर है। १७-विमानों में रहने वाले वैमानिक देव कहलाते हैं। १८-उक्त वैमानिक देव कल्पोपन्न और कल्पातीत के भेद से दो प्रकार के हैं। १९-वे एक दूसरे के ऊपर स्थित हैं। २०-सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत, इन १२ स्वर्गों में तथा नौ ग्रैवेयकों में और विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्ध में वैमानिक देवों का निवास है। २१–आयु, प्रभाव, सुख, कान्ति, लेश्या की विशुद्धि, इन्द्रियों का ओर अवधिज्ञान का विषय, ये सब ऊपर-ऊपर के देवाताओं में अधिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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