Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ ६०............ तत्त्वार्थ-सूत्र दर्शनविशुद्धिविनयसंपन्नता शीलवतेष्वनतिचारोऽभीक्ष्णं ज्ञानोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी सङ्घसाधुसमाधिवैयावृत्यकरणमर्हदाचार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्तिरावश्यकापरिहाणिमार्गप्रभावनाप्रवचनवत्सलत्वमिति तीर्थ कत्त्वस्य ।।२३।। परात्मनिन्दाप्रशंसे सदसद्गुणाच्छादनोदभावने च नीचैर्गोत्रस्य ॥२४॥ तद्विपर्ययो नीचैर्वृत्यनुत्सेको चोत्तरस्य ॥२५॥ विघ्नकरणमन्तरायस्य ॥२६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102