Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 96
________________ नौवाँ अध्याय ४१ – पृथक्त्ववितर्क, एकत्ववितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती और व्युपरत क्रियानिवृत्ति - ये चार शुक्लध्यान हैं। ४२ – यह शुक्लध्यान अनुक्रम से तीन योग वाला, किसी एक योग वाला, काययोगवाला और योगरहित होता है। ९१ ४३ - पहले के दो शुक्लध्यान, एक आश्रय वाले एवं सवितर्क होते हैं। ४४ – इनमें से पहला सविचार है और दूसरा अविचार है। ४५ - वितर्क श्रुत को कहते हैं। ४६- - विचार का अर्थ हैं—–अर्थ, व्यंजन योग की संक्रान्ति = परिवर्तन | , शब्द और ४७ — सम्यग्दृष्टि, श्रावक विरत, अनन्तानुबन्धिवियो- जक, दर्शनमोहक्षपक, उपशमक, उपशान्तमोह, क्षपक, क्षीणमोह और जिन - ये दस अनुक्रम से असंख्येय गुण निर्जना वाले होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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