Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 88
________________ नौवाँ अध्याय ८३ ८-धर्म-मार्ग से च्युत ने होने और कर्मों की निर्जरा = क्षय के लिए जो सहन करने योग्य कष्ट सहे जायँ, वे परीषह हैं। ९- क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, नग्नत्व, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ,रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कारपुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन—ये कुल बाईस परीषह हैं। १०-सूक्ष्मसम्पराय और छद्मस्थवीतराग में चौदह परीषह संभव हैं। ११-जिन (वीतराग तीर्थंकर) भगवान् में ग्यारह सम्भव हैं। १२-बादरसम्पराय में सभी अर्थात् बाईस ही सम्भव हैं। १३--ज्ञानावरण के निमित्त से प्रज्ञा और अज्ञान परीषह होते हैं। १४--दर्शनमोह और अन्तरायकर्म से क्रमश: अदर्शन और अलाभ परीषह होते हैं। १५-चारित्रमोह से नग्नत्व, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश,याचना, और सत्कार-पुरस्कार परीषह होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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