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- सातवाँ अध्याय ...........६५ ९-असत् = झूठ बोलना, अमृत अर्थात् असत्य है। १०-बिना दिये लेना, स्तेय अर्थात् चोरी है। ११–मैथुन अर्थात् विषय-सेवन अब्रह्म है।
१२-चेतन तथा अचेतन रूप किसी भी वस्तु पर ममत्व का भाव = परिणाम होना परिग्रह है।
१३---जो शल्य से रहित हो, वह व्रती हो सकता है।
१४—गृहस्थ-श्रावक और साधु के भेद से व्रती दो प्रकार के होते हैं।
१५–अणुव्रतधारी हो, वह आगारी-व्रती = श्रावक कहलाता है।
१६-गृहस्थ = आगारी व्रती दिग्विरति, देशविरति, अनर्थदण्डविरति, सामायिक, पौषधोपवास, उपभोगपरिभोगपरिमाण, और अतिथिसंविभाग, इन व्रतों से भी संपन्न होता है।
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