Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 80
________________ आठवाँ अध्याय ८-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन के चार आवरण तथा निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि; ये पाँच वेदनीय = अनुभव; यो नौ दर्शनावरणीय हैं। ९–वेदनीय कर्म के सातावेदनीय और असाता-वेदनीय, ये दो भेद हैं। १०-दर्शनमोह, चारित्रमोह, कषायवेदनीय और नोकषायवेदनीय के क्रमशः तीन, दो, सोलह और नौ भेद हैं; जैसे—सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, तदुभय = सम्यक्त्वमिथ्यात्व, ये तीन दर्शन-मोहनीय है। कषाय और नोकषाय ये दो चारित्रमोहनीय हैं। जिनमें से क्रोध, मान, माया और लोभ, ये प्रत्येक अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन रूप से चार चार प्रकार के होने से सोलह भेद-कषायचारित्र-मोहनीय के होते हैं तथा हास्य, रति, अरिति, शोक, भय, जुगुप्सा स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद; ये नौ नोकषाय चारित्रमोहनीय के होते हैं। ११–नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव, ये चार आयुष्य-कर्म के भेद हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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