Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 52
________________ ४७ पाँचवाँ अध्याय ११-अणु = परमाणु के प्रदेश नहीं होते। . १२-इन समस्त धर्मादि द्रव्यों की अवस्थिति लोकाकाश १३-धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य की स्थिति समग्र लोकाकाश में है। - १४-पुद्गलों की स्थिति लोकाकाश के एक प्रदेश आदि में विकल्प अनियतरूप से जानना चाहिए। १५-लोक के असंख्यातवें भाग आदि में जीवों का अवगाह है। १६-क्योंकि दीपक के प्रकाश के समान जीवों के प्रदेशों में संकोच और विस्तार होता है। १७-जीव ओर पुद्गलों की गतिक्रिया में धर्मद्रव्य तथा स्थतिक्रिया में अधर्मद्रव्य सहकारी है। १८-अवकाश अर्थात् जगह देना, यह आकाशद्रव्य का उपकार है। १९-शरीर, वचन, मन, उच्छ्वास, नि:श्वास-यह पुद्गलों का उपकार है। २०–तथा सुख, दुःख, जीवन और मरण भी पुद्गलों के ही उपकार हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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