Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Akhileshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 60
________________ छठा अध्याय छठा अध्याय १-शरीर, वचन और मन की क्रिया को योग कहते हैं। २--वह योग ही कर्मों के आगमन का द्वार-स्वरूप आस्रव है। ३--शुभयोग पुण्य का आस्रव है। ४-अशुभयोग पाप का आस्रव है। ५–कषाय-सहित जीवों के साम्परायिक और कषाय-रहित जीवों के ईर्यापथ आस्रव होता है। ६-पाँच अवत, चार कषाय, पाँच इन्द्रिय और पच्चीस क्रिया-ये सब पहिले साम्परायिक आस्रव के भेद हैं। ७-तीव्रभाव, मन्दभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, वीर्य ओर अधिकरण की विशेषता से उस आस्रव में विशेषता अर्थात् न्यूनाधिकता होती है। ८-आस्रव के अधिकरण = आधार जीव और अजीव दोनों हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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