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पाँचवाँ अध्याय ११-अणु = परमाणु के प्रदेश नहीं होते। . १२-इन समस्त धर्मादि द्रव्यों की अवस्थिति लोकाकाश
१३-धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य की स्थिति समग्र लोकाकाश में है। - १४-पुद्गलों की स्थिति लोकाकाश के एक प्रदेश आदि में विकल्प अनियतरूप से जानना चाहिए।
१५-लोक के असंख्यातवें भाग आदि में जीवों का अवगाह है।
१६-क्योंकि दीपक के प्रकाश के समान जीवों के प्रदेशों में संकोच और विस्तार होता है।
१७-जीव ओर पुद्गलों की गतिक्रिया में धर्मद्रव्य तथा स्थतिक्रिया में अधर्मद्रव्य सहकारी है।
१८-अवकाश अर्थात् जगह देना, यह आकाशद्रव्य का उपकार है।
१९-शरीर, वचन, मन, उच्छ्वास, नि:श्वास-यह पुद्गलों का उपकार है।
२०–तथा सुख, दुःख, जीवन और मरण भी पुद्गलों के ही उपकार हैं।
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